माँ
माँ के सम्मान में क्या कहूँ,
ये शब्द अपने आप मे सम्माननीय है,
कभी मेरे दर्द से जो दुखी हुई वो सिर्फ माँ थी,
हमेशा साथ थी मेरे,चाहे मैं बड़ा था या बच्चा था,
माँ जब मेरे पास थी वो जमाना बड़ा अच्छा था,
कभी उफ्फ ना कि जिसने मेरे किसी भी काम को,
वो जब तक थी बस मैं तभी तक बच्चा था ,
बहुतो की आँखों मे मेरी कमिया खटकती हैं,
वो बस माँ थी जिसके लिए मैं हर हाल में अच्छा था,
कभी जब खुद अपनी ही गलतियों पर मैं माँ पर बिगड़ता था,
वो बस माँ ही थी जिसे कभी बुरा ना लगता था,
जमाने भर के सामने मुझे अच्छा ही कहती थी,
वो बीमार भी होती थी तब भी फिकर मेरी ही रहती थी,
वो कोई और होंगे जो मुझे हमेशा गलत ही समझते है,
बस एक मेरी माँ थी जिसके लिए मैं हाल में अच्छा था,
कभी जब दर्द हुआ माँ को,दिल मेरा भी दुखी था,
लेकिन जब दर्द हुआ मुझको मेरी माँ अपने मन मे कही रोती थी,
वो रोती ना थी मेरे सामने क्योंकि मेरे होशलो को जिंदा रखना था,
खुशनसीब है वो बच्चे जिनके सर पर माँ का साया है,
कितने भी गलत काम हो उनके उन्हें माँ ने बचाया है,
अगर सम्मान माँ का कर नही सकते तो अपमान भी मत करो,
कभी हाथ पकड़कर माँ ने तुम्हे चलना सिखाया था,
कभी ना छोड़ती थी हाथ तुम्हारा,जब तुम लड़खड़ाते थे,
अब तुम्हारी बारी है क्योंकि माँ अब लडख़ड़ाई है,
गिरने ना देना तुम उसको अब ये तुम्हारी जिम्मेदारी है,
माँ ने पैदा किया तुमको उसका ये अहसान भारी है,
— नीरज त्यागी