अंधेरे में प्रकाश
मैंने देखा है संध्या के धुंधलके में उजास
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-
किसी क्षण में तो लगा जैसे कहीं कुछ भी नहीं
एक धुंधली-सी थिरकती-सी किरण भी तो नहीं
ग़म के साये में भी पाया है अचानक ही प्रकाश
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-
गहरे सागर में समाते हुए सूरज के ही साथ
छाया घनघोर अंधेरा घिरी अंधियारी रात
फिर सुबह फैला था सूरज का सलोना-सा प्रकाश
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-
घिर गई काली घटाएं और बरसात हुई
जैसे जीवंत उदासी से मुलाकात हुई
छंट गई काली घटा फैला चहुं ओर प्रकाश
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-
जब कोई साथ न था कोई सहारा भी न था
दो घड़ी चैन से रहने को किनारा भी न था
ऐसे हालात में पाया है स्वयं से ही प्रकाश
और पाया है रातों के अंधेरे में प्रकाश-
सुन्दर रचना लीला बहन .
रातों के अंधेरे में और ग़म के हालात में स्वयं से ही प्रकाश पाना पड़ता है. जब हम स्वयं अपने ही प्रकाश से प्रकाशित होते हैं, तभी हमें दूदरे लोगों का साथ मिल पाता है.