नवीन उजास का संबल
आज ऑलराउंडर क्रिकेटर रहे मुनीष का बेटा नरेश पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट खेलने जा रहा था. वह वेतन लेने गए पिताजी की प्रतीक्षा कर रहा था. 1000 रुपल्ली लेकर मुनीष कुछ सोचते-सोचते घर पहुंच ही गया और मासूम बेटे से बतियाने लगा-
”बेटा, मेरी मां ने न जाने कितनी बार मुझे वह कहानी सुनाई थी. पहली बार एक पेंसिल चोरी करने पर एक बच्चे को मां ने रोका नहीं, शाबाशी दी. जब चोरी करने पर उसे फांसी पर लटकाया जाने लगा, तो आखिरी इच्छा के नाम पर वह मां से मिला. उसने ज़ोर से मां का कान काट खाया और कहा- ”तू मेरी मां नहीं, मेरी सबसे बड़ी दुश्मन है. अगर, पहली बार चोरी करने पर मुझे रोकती और एक थप्पड़ मारती, तो आज मुझे फांसी की सजा नहीं होती. मैंने मां की उस कहानी को महज कहानी समझा, कोई सीख नहीं ली.
यह तो तुझे पता ही है, कि मैं कभी ऑलराउंडर क्रिकेटर रहा था. मेरा खेल तो सबके सामने था, उसमें तो कहीं कोई झोल-पोल संभव ही नहीं था, फिर भी न जाने कैसे मुझे मैच फिक्सिंग की लत लग गई. सबको कुछ-कुछ गड़बड़ लगती थी, पर मैं पकड़ा नहीं गया. मेरी लत पड़ी और यह लत बढ़ती गई, एक दिन मैं पकड़ा गया और सीसीटीवी के खुफ़िया कैमरों ने गवाही भी दे दी, जिसको नकारा या झुठलाया नहीं जा सकता. मुझे क्रिकेट से तो निकाल ही दिया गया था, भारी-भरकम जुर्माना भी भरना पड़ा. इसी कलंक के चलते मुझे कोई सम्मानजनक नौकरी भी नहीं मिल रही. आज मुझे ट्रकों और बसों की सफाई करने के लिए विवश होना पड़ रहा है. पूरा महीना खून-पसीना एक करने के बाद मिल रही हैं, एक हज़ार रुपल्ली और ज़िल्लत की ज़िंदगी. मेरी इस बात को महज कहानी मत समझना और हर काम ईमानदारी से करना. हां, एक बात और, मेरे कारण तुझे बहुत कुछ सुनना-झेलना पड़ेगा, उसे कटु सत्य मानकर चलना और इसी कटु सत्य को सीढ़ी बनाकर निरंतर विकास और विजय की मंज़िल पर पहुंचना. यही मेरे जीवन का सारांश भी है और मेरा आशीर्वाद भी”.
मन में नवीन उजास का संबल लिए नरेश विश्वास के साथ क्रिकेट खेलने चल पड़ा.
हमें अपनी ही नहीं, दूसरों की ठोकर से भी सीख लेनी चाहिए. पिता ने बेटे में नवीन उजास का संबल भरा. जो गलती उसने अपने जीवन में की थी, उस गलती से सीखने और उसको न दोहराने की सीख दी. नए विश्वास से भरा बेटा अपनी मंजिल पाने चल पड़ा.