नजरिया
”ओह, मैं बाल-बाल बच गया!” उसने खुद से कहा, ”अगर सुरेंद्र समय पर नहीं आता, तो मेरा नजरिया ही मेरा कांटा बन जाता.”
”पिताजी बार-बार कहते हैं-
”नजर को बदलो नजारे बदल जायेंगे,
सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे,
कश्तियों को बदलने कि जरूरत नहीं,
दिशाओ को बदलो किनारे बदल जायेंगे.”
मैंने कभी इस सुविचार पर गहराई से सोचा ही नहीं. मैं बोर्ड की परीक्षा में फेल जरूर हो गया, पर न पिताजी ने डांटा, न ममी ने. ममी ने तो यह कहकर मेरे मन को शांत करने की कोशिश भी की-
”बेटा जीवन में हार-जीत तो चलती ही रहती है, आज नहीं तो कल पास जरूर हो जाओगे.”
भला हो सुरेंद्र का, कम नंबर आने पर भी मिठाई बांटने-खिलाने चला आया. जब मैंने पूछा- ”आगे क्या करने का इरादा है?” वह हंसकर बोला था-
“अरे यार! मार्क्स कम हैं। श्रेणी-सुधार के लिए फिर परीक्षा दूंगा. तुम सोच रहे होगे, अजीब पागल है, पर भाई मैं यह सोच लूंगा कि फेल हो गया.”
तभी मेरा नजरिया बदला- ”मैं फेल हो गया, पर यह सोचकर फिर इसी परीक्षा में बैठूंगा कि मार्क्स कम हैं. मुझे भी श्रेणी सुधार करना है.”
इसी नजरिए से मैंने आत्महत्या करने का विचार छोड़ दिया. अब विचार कर रहा हूं, तो लगता है- ”क्या पागलपन करने जा रहा था! मेरी जहर से नीली पड़ी देह, देह नहीं लाश, को देखकर माता-पिता की क्या हालत होती? इकलौते बेटे को कंधा देकर पिताजी भी जीते जी मर जाते!”
”धन्यवाद सुरेंद्र, मेरा नजरिया बदलने के लिए.”
बहुत अछि सोच है लीला बहन , इसे में ही सभ कुछ आ जाता है ,, ”नजर को बदलो नजारे बदल जायेंगे,
सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे,
कश्तियों को बदलने कि जरूरत नहीं,
दिशाओ को बदलो किनारे बदल जायेंगे.”
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको लघुकथा बहुत अच्छी लगी. हमेशा की तरह आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस ब्लॉग की गरिमा में चार चांद लगा दिये हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
फेल होने के बाद भी पास होने की कोशिश की जा सकती है, नजरिया बदलने से जीवन बच सकता है. अनेक साहित्य्कार, वैज्ञानिक, कलाकार स्कूल की कक्षा में फेल हो गए, पर हिम्मत न हारने से जीवन की कक्षा में पास हो गए.