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इंसानियत यहां रहती है

एक पाठक बंधु ने हमें अनमोल वचन का एक पोस्टर भेजा था, जिसमें एक बच्चा एक प्यास से तड़पते बच्चे को अपनी बोतल से पानी पिलाकर बहुत खुश हो रहा है, वह इस बात से अनजान है कि वह इंसानियत का फर्ज़ निभा रहा है. वह तो बस सबकी खुशी में खुश होना चाहता है. उस पोस्टर में अनमोल वचन लिखा हुआ था-Image result for इंसान तो घर-घर में पैदा होते हैं, बस इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है.इंसान तो घर-घर में पैदा होते हैं,
बस इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है.

सचमुच इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है, लेकिन जब लेती है तो बहुत खूबसूरत लगती है. तब हम कहते हैं- इंसानियत यहां रहती है.

रोजा तोड़ इस शख्स ने बचाई 2 दिन की नवजात की जान, खून दे बोला-रोजे से ज्यादा जरूरी है नन्ही जान-

बिहार के दरभंगा की 2 दिन की नवजात बच्ची का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव था, जिस वजह से खून का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। बच्ची के पिता ने सोशल मीडिया में खून की मांग की. इसी दौरान एक शख्स अस्पताल पहुंचा और अपना खून देकर बच्ची की जान बचाई. किसी को खून देने के लिए पहले ब्लड डोनर को कुछ खाना होता है, वह खाली पेट ब्लड डोनेट नहीं कर सकता. उस दिन उसका रोजा था. उसने अपना रोजा तोड़ दिया. अशफाक नाम के इस शख्स का कहना है कि किसी इंसान की जान बचाना रोजे से ज्यादा जरूरी है. रमजान के दौरान ये दूसरा मौका है जब किसी मुस्लिम शख्स ने किसी हिंदू की जान बचाई है. कुछ दिन पहले बिहार के ही गोपालगंज में एक मुस्लिम शख्स ने 8 साल के हिंदू बच्चे की जान बचाई थी. इंसानियत यहां रहती है.

मुस्लिमों को सहरी के लिए ढोल बजाकर उठा रहे सिख बुजुर्ग-

सोशल मीडिया पर एक विडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें देखा जा सकता है कि रमजान के महीने में मुस्लिमों को सुबह जगाने का काम एक सिख बुजुर्ग कर रहे हैं. यह विडियो जम्मू-कश्मीर के पुलवामा का बताया जा रहा है. इंसानियत यहां रहती है.

…ताकि कोई सिर्फ पानी से न खोले रोजा, ये छात्र पहुंचाते हैं सहरी-

भोपाल के शैलेंद्र दुबे और उनके दोस्त रमजान के पवित्र महीने में सहरी से पहले अपना बिस्तर छोड़ देते हैं. वह ऐसा रोजा रखने के लिए नहीं बल्कि शहर के अस्पतालों में इलाज कराने आए मुस्लिम मरीजों के रिश्तेदारों के लिए करते हैं. दरअसल, मुस्लिम मरीजों के साथ पहुंचे तीमारदारों के लिए अस्पताल में रोजा खोलने का कोई इंतजाम नहीं होता. ऐसे में शैलेंद्र और उनके साथी अपने साथ खाने-पीने की चीजें लेकर पहुंचते हैं और रोजेदारों का रोजा खुलवाते हैं. शैलेंद्र के दिमाग में यह विचार एक मुस्लिम महिला को देखने के बाद आया, जिनके पिता अस्पताल में भर्ती थे. रोजा खोलने के वक्त महिला के पास खाने-पीने की कोई चीज नहीं थी, जिसकी वजह से वह सहरी के दौरान पानी पीकर रोजा खोल रही थीं. इंसानियत यहां रहती है.

कराची के पुलिसकर्मी ने कुत्ते को दिलाई गर्मी से राहत, विडियो वायरल-

न गर्मी किसी की सगी होती है, न इंसानियत किसी की बपौती. सोशल मीडिया पर पाकिस्तान के कराची शहर के एक पुलिसकर्मी का विडियो वायरल हो रहा है. इस विडियो में पुलिसकर्मी एक कुत्ते को अपने हाथ से पानी पिलाते हुए दिख रहा है. कुत्ते को पानी पिलाने के बाद पुलिसकर्मी उसका मुंह धोते हुए भी दिखाई देता है. लोग पुलिसकर्मी के इस काम के लिए उसकी काफी तारीफ कर रहे हैं. इंसानियत यहां रहती है.

IPL फाइनल: धोनी ने रखा था चोटिल वॉटसन का खास ध्यान

आईपीएल के फाइनल मुकाबले में 117 रन की नाबाद पारी खेलकर अपनी टीम चेन्नै सुपर किंग्स (CSK) को खिताब जिताने वाले वॉटसन के बारे में अब सभी यह जानते हैं, कि वह इस परी के दौरान हैम्स्ट्रिंग इंजरी से जूझ रहे थे फिटनेस के प्रति कड़ा रुख रखने वाले धोनी पिछले कुछ मैचों से वॉटसन को चोटिल होने के बावजूद CSK की टीम में खिला रहे थे. धोनी को हर मैच के दौरान इस बात का पूरा ख्याल था कि चोटिल वॉटसन को फील्डिंग में अधिक मशक्कत न करनी पड़े, तो उनका इस्तेमाल किस पोजिशन पर किया जाए. इंसानियत यहां रहती है.

इंसानियत कहां-कहां रहती है, कुछ आप भी कामेंट्स में बताइए.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “इंसानियत यहां रहती है

  • लीला तिवानी

    इंसान तो घर-घर में पैदा होते हैं,
    बस इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है.

    सचमुच इंसानियत कहीं-कहीं जन्म लेती है, लेकिन जब लेती है तो बहुत खूबसूरत लगती है. तब हम कहते हैं- इंसानियत यहां रहती है.

    मन के दरवाजों को खुला रखिए,
    इंसानियत की तितलियों को अंदर आने दीजिए.

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