दर्द देकर पता नही हमदर्द मेरा कहाँ गया
कभी उसने पुकारा ही नही पलटकर हमे,
हम बस यूँ ही उसे जाते हुए निहारते रहे,
हर वक्त साथ चलने के वादे किए थे उसने
अर्थी वादों की अपने आप उठा कर चले गए,
ज़माने से कहते थे जो बहुत चाहते है हमे,
जमाने के लिए हमे मजाक बना कर चले गए
खुशियो से जिसने जिया हर हालात को
दुःखो के शैलाब में उसको डुबो कर चले गए,
जिसे आता था कभी तूफानो से लड़ने का हुनर,
उसकी आँखो में फ़रेब की धूल झोंक कर चले गए,