गज़ल
हमसे कोई खता न हो जाए
दोस्त अपना खफा न हो जाए
अपना चेहरा छुपा ले तू मुझसे
दिल फिर आशना न हो जाए
न कर सजदे इसके आगे तू
ये बुत भी खुदा न हो जाए
सुलह हो गई मगर ये डर है फिर
कोई झगड़ा खड़ा न हो जाए
थोड़ी मिकदार में ही देना मुझे
दर्द बढ़कर दवा न हो जाए
किसी के दुख का न उड़ाना मजाक
ये मज़ा कल सज़ा न हो जाए
सर पे इक बोझ जैसा लगता है
कर्ज़ जब तक अदा न हो जाए
— भरत मल्होत्रा