संस्मरण

संस्मरण – स्थाई आनंद

आज स्वप्न में पिता का दर्शन पा कर  दिवस मानो खिल सा गया | पूरा दिन उनकी मधुर समृतियों में गुज़र गया |अब तो बस यही समृतियाँ ही शेष हैं !!!
      उम्रके अनुसार वे स्त्री जाति को माई ,बहन और बेटी कह कर बुलाते थे| सदैव दूसरों के दुख दूर करने की चेस्ठा में रत रहते| उनके होते  कोई भिखारी या दुखिया द्वार से कभी खाली हाथ नहीं जाता था |
वे कभी भी थोड़ा सामान नहीं लाते थे | चाहें खाने का सामान हो या अन्य सामान | माँ की साड़ी हो या स्वयं का कुरता कभी 7-8 से कम नहीं लाते |कुछ नये वस्त्र वो अपने बक्से में रख लिया करते थे |माँ ने भी इस पर कभी प्रश्न नहीं किया |
बात उन दिनों की है जब मेरी अवस्था 11 – 12वर्ष की रही होगी |होली का दिन था घर में विशेष पकवान बन रहे थे पिता जी पीछेके आँगन में टेसू के फूल उबाल कर रंग बना रहे थे |नीले, काले ,हरे बाजारू रंग उन्हे बिल्कुल पसंद नहीं थे | हम सभी मगन हो टेसू के केसरिया रंग से अपनी -अपनी स्पेंकर ,पिचकारी भरकर उछल कूद मचा रहे थे| वो वक्त कुछ और था , अब तो टेसू (पलास )के फूलों से कोई रंग ही नही बनाता |शायद ही टेसू के फूलों के रंग से कोई परिचित हो |प्राक्रतिक रंगो की वह सुंदर होली नजाने कहाँ खो गयी | कहाँ खो गये वो सुंदर रंग |
पिता जी कहा करते थे पलाश एक औषधि है इसका रंग त्वचा संबंधी रोगों से शरीर की रक्षा करता है | अब तो केमिकल रंगो का जमाना है जो तरह तरह की बीमाँरियों का घर है |
हम सभी इधर रंग की उमंग मेंडूबे थे अचानक द्वार पर मेरी निगाह पड़ी तो देखा पिताजी हाँथ मे भोजन का थाल किसी को दे रहे थे |  हम सभी उसे रंगने के लिये वहाँ पहुँच जाते हैं  ,पर यह क्या ????ये तो भिखारिन थी जो फटी चिटी धोती से बार – बार अपने तन को छुपाने का प्रयास कर रही थी| पिता जी फिर जाते हैं और एक नयी सारी लिये वापस आते हैं और बूढी दादी को उढाते हुए कहते हैं ये तुम्हारे लिये माई | बूढी दादी कभी सारी को और कभी पिता जी को देख रही थी| आँखोमें आँसू और होठ हँस रहे थे | उसके जाते ही पिता जी ने हम बच्चों से कहा रंग के साथ  तो होली सभी खेलते हैं बच्चों  ! तुम लोग रंगके साथ – साथ  प्रेम दया ,करुणा के रंगों से भी होली खेला करो | यह रंग स्थाई आनंद देता है जो कभी समाप्त नहीं होता |
                        — मंजूषा श्रीवास्तव
                        लखनऊ (यू. पी )

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016