खाना खाओ भरपेट मियां
खाना खाओ भरपेट मियाँ वो मिले प्लेट या दोने में
तुम ढूंढ रहे हो जाने क्या दुनिया के कोने कोने में
पर ये दुनिया हे गोल यहाँ कोना मिलना नामुमकिन है
अब झेलो जो किस्मत में है क्या रक्खा रोने धोने में
वो घर की महरी, नौकर की हर बात हमेशा मानेगी
और कुछ भी बोला कभी पति तो जमकर लम्बी तानेगी
ऐसी तैसी कर डालेगी या खूब झिंकायेगी जमकर
आंसू बाहर बह जाएंगे पहले से भरे भगोने में
अब झेलो जो किस्मत में है क्या रक्खा रोने धोने में
बीबी हे भैया बड़ी गज़ब किस के काबू में रहती है
नालायक और निखट्टू पति को खुले आम अब कहती है
उससे मत बहस कभी करना तुम कभी न जीतोगे तय है
बेहतरी इसी में है प्यारे बस तान के चादर सोने में
अब झेलो जो किस्मत में है क्या रक्खा रोने धोने में
— मनोज श्रीवास्तव