लघुकथा

लघुकथा – असली विकलांग

वह हट्टा-कट्टा बॉडी बिल्डर-सा दिखने वाला आदमी चलती हुई बस में दो की सीट पर अकेला फैलकर ऐसे बैठा हुआ था मानो पूरी बस का मालिक वही है ! उसे देखकर पिछले स्टॉप पर चढ़ा हुआ एक दुबला -पतला किशोर वय का लड़का अपनी बैशाखी संभालते हुए आगे बढा,और हिम्मत करके उस तगड़े आदमी से डरते-डरते बोला -” भाईसाहब थोड़ा खिसक जाइए न,मैं भी बैठ जाऊंगा !’
इस पर उस पहलवान ने ऐसे घूरा मानो उस लड़के ने कोई अपराध कर दिया हो ! फिर लगभग गुर्राते हुए कहा-” तुम्हें दिख नहीं रहा क्या ? सीट खाली कहां है कहां ?”
“भाईसाहब जी,दो लोग बैठते हैं !” लड़के ने जवाब देने की हिम्मत जुटा ही ली !
“ले बैठ जा,ज़िद करता है तो !” कहकर वह आदमी थोड़ा -सा कुछ इस तरह खिसक गया ,मानो बहुत बड़ा अहसान कर रहा हो !
तभी अगले स्टॉप पर एक बूढ़ी औरत हांफते -हूंपते सिर पर एक पोटली रखे बस में दाखिल हुई,और चारों ओर नज़र घुमाकर भरी हुई बस देखकरनिराश होकर,चुपचाप एक ओर खड़ी हो गई !
यह उस विकलांग लड़के से न देखा गया ,वह बहुत ही विनम्रता से उस औरत की ओर मुख़ातिब होकर बोला-” माताजी ,आप इधर मेरी जगह बैठ जाइए,मैं खड़ा हो जाता हूं !” इस पर उस तगड़े आदमी ने उस लड़के को यूं घूरा,मानो उसने कोई आश्चर्यजनक बात कह दी हो !
” नहीं बेटा,तुम तो बैठे रहो,तुम तो वैसे भी शरीर से दिक्कत में दिख रहे हो ,पर बिटवा तुम तो भगवान की दया से ठीक हो तुम खड़े हो जाओ न !” बूढ़ी मां ने एक साथ उन दोनों से कहा !
” नहीं ,मैं क्यों खड़ा होऊं ? आपको बैठना है तो इस लड़के की जगह पर बैठ जाओ,यह भी तो मेरी ही सीट है,मैंने  ही इसे दी है !” वह आदमी  ऐंठते हुए स्वर में बोला !
वैसे तो सारी बस के लोग मौन थे ,पर वे अच्छी तरह से जान चुके थे कि असली विकलांग कौन है !

                 — प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]