ग़ज़ल
वज़ीरों में हुआ आज़म, बना वह अब सिकंदर है
विपक्षी मौन, जनता में खमोशी, सिर्फ डरकर है |
समय बदला, जमाने संग सब इंसान भी बदले
दया माया सभी गायब, कहाँ मानव? ये’ पत्थर हैं |
लिया चन्दा जो’ नेता अब वही तो है अरब धनपति
जमाकर जल नदी नाले, बना इक गूढ़ सागर है |
ज़माना बदला’ शासन बदला’ बदली रात दिन अविराम
गरीबो के सभी युग काल में अपमान मुकद्दर है |
अदालत में सफल मुक्तार जज के मन को’ पढ़ लेता
करे जो शाह की गुणगान वो विजयी सुखनवर है |
सभी व्याकुल हैं, क्या इंसान, पशु, पक्षी, सकल है त्रस्त
तृषित सब जीव, मीठा जल कहाँ ? प्यासा समंदर है |
हिफाज़त देश की है फ़र्ज़ नेता, आम, सैनिक का
रहे तैयार करने जान सीमा पर निछावर है |
अनूठा ताज को क्यों तर्क का मुद्या बनाया अब
किसी ने भी किया निर्मित, यही अनुपम धरोहर है |
मनोहर बात करके आम को वो मोहते हरबार
दबाकर भोगते सुख सुविधा, जनता जीस्त दूभर है |
सगा कोई नहीं पैसा ही’ माई बाप है सबका
सहोदर से सहोदर क़त्ल, ‘काली’ कैसा’ मंज़र है |
कालीपद ‘प्रसाद’