क्यों होते हैं बच्चे निराश !
लेखक की बालमनोविज्ञान परक कृति क्यों बोलते हैं बच्चे झूठ से.
क्यों होते हैं बच्चे निराश !
सामान्यतः माता-पिता और अध्यापकों को कहते सुना व देखा जाता है कि अमुक बच्चा कमजोर है। उसे कुछ नहीं आता सुस्त रहता है।अकेले गुमसुम बैठा रहता है जबकि वास्तविकता यह होती है कि बालक विभिन्न शरीरिक मानसिक कारणों चोट लगना दुर्घटना अथवा बीमारी आदि से कभी-कभी अशक्त हो जाते हैं। अन्य समान आयु के बच्चों से कमजोर हो जाते हैं।परिवार के वातावरण के साथ-साथ विद्यालय सामाजिक परिवेश आदि का गलत प्रभाव ऐसे बच्चों में हीन भावना पैदा करता है।बालक की दुर्बलता-अशक्तता को ध्यानपूर्वक देखने व समझने के बाद निम्नलिखित कारण सामने आते हैं:-
—- किसी दुर्घटना असावधानीवश बच्चे के मस्तिष्क में लगी चोट या हुई क्षति उसकी अशक्तता का कारण हो। इससे उसके बोलने कीशक्ति क्षमता प्रभावित हो गई हो। इसलिए वह रुक-रुक कर बोलने व हकलाने लगा हो।
—- सामान्य बुद्धि का अभाव अल्पता भी कभी-कभी बच्चों की अशक्तता उनकी कमजोरी का कारण बन जाती है जिससे उनके समझने की शक्ति दुर्बल पड़ जाती है।
—- यदि बालक की श्रवणशक्ति कम है अथवा उसकी श्रवणेन्द्रिय में कोई दोष है तब भी वह अशक्त हो जायेगा अन्य बालकों से विरल ही दृष्टिगोचर होगा।
—- समुचित प्रोत्साहन न मिलना सदैव एकाकी रहना भी अशक्तता का कारण बन जाता है।
—- माता-पिता व अन्य सम्बन्धियों द्वारा लगातार डांट-फटकार शान्त रहने को बार-बार कहने ये न करो वो न करो आदि से भी बालक निराश हो जाते हैं। संकोची स्वभाव उनके व्यक्तित्व की विशेषता बन जाती है।
—- सामान्यतः बालक अपने से बड़ों माता-पिता के कार्यों का अनुसरण करता है।यदि उसके माता-पिता बलात आचरण करते हैं तो बच्चा भी निश्चय ही प्रभावित होगा।तुतलाकर हकलाकर अथवा बनकर बोलना झगड़ालू स्वभाव जैसी समस्यायें पैदा हो सकती हैं।
—- कभी- कभी माता-पिता व अन्य परिवार जनों द्वारा बालक की सार्मथ्य शक्ति व क्षमता से अधिक प्रगति की इच्छा रखना भी उसकी अशक्तता का कारण बन जाता है। अधिकांश ऐसा बड़े बच्चों के साथ होता है।
—- सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश से निर्मित कारण भी बच्चे की अशक्तता दुर्बलता के कारण बन जाते हैं न उच्चारण कर सकने वाले अक्षरों-षब्दों को जबरदस्ती रटाना इनमें से एक प्रमुख कारण है।
—- असामान्य रूप से पड़ जाने वाली गलत आदतों से बच्चे कभी-कभी निराशा के शिकार हो जाते हैं।
—- विद्यालय में होने वाला बालक के साथ उपेक्षा पूर्व व्यवहार अध्यापक की भेदभावपूर्ण नीति बालक की रुचि को अनदेखा करने से भी उसमें हीन भावना विकसित हो जाती है।
—- बच्चो की अशक्तता का उसके परिवार व वातावरण से समस्याओं के सम्बन्ध में हमें प्रायः अपने पास-पड़ोस से अनुभव प्राप्त होते हैं।फिर माता बालक की पहली शिक्षिका है और परिवार उसकी प्रथम पाठशाला।माता-पिता जहां के साथ जहां वह विद्यालय के बाद युवावस्था तक अपना अधिकांश समय बिताता है ऐसी स्थिति में माता-पिता व उसके परिवार का बालक पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ना स्वभाविक है वह पारिवारिक वातावरण में ही पल-बढ़ कर बड़ा होता है जिसें कारण अधिकांश बालकों की अभिरुचियों मनः स्थिति परिवार व उसके वातावरण से प्रभावित होती है।परिवार व वातावरण के प्रभाव उस पर मानसिक व शारीरिक दोनों रूपों से पड़ते हैं।परिवार में लड़ाई- झगड़ा गाली- गलौज का माहौल जहां उसे झगड़ालू प्रवृत्ति की ओर धकेलता है वहीं प्रोत्साहन शान्ति प्रेम सद्भाव का वातावरण समुचित विकास के पथ का प्रदीप सिद्ध होता है इसी प्रकार वातावरण की स्थितियां भी बालक पर अनुकूल एवं प्रतिकूल प्रभाव अपने कारकों व तत्वों द्वारा डालती हैं।अन्य सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं के साथ-साथ उसकी बोलचाल आचार-विचार रहन-सहन को प्रभावित करती हैं। वातावरण का भौतिक पक्ष जहां बालक की शारीरिक बनावट कौशल बोलचाल रंगलिंग आयुभेद को प्रभावित करता है वहीं उसकी सांस्कृतिक पक्ष आचरण वेश-भूषा भाषा- संस्कृति शब्द व्यापार के द्वारा अपना प्रभाव डालता है।
—- चूंकि जन्म से मृत्यु पर्यन्त निरन्तर परिवार व वातावरण का परस्पर सम्बन्ध रहता है। इसलिए इनका प्रत्येक पहलू जन्मने वाले बालक को सकारात्मक व नकारात्मक रूप से समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार प्रभावित करता है तथा उसकी उन्नति व अवनति का कारण भी बनता है।
समस्या कोई भी हो समाधान खोज ही लिए जाते हैं। ऐसा ही निराश बालकों की समस्याओं के सन्दर्भ में कहा जा सकता है।सामान्यतः बालक की निराशा के कारण मुख्य रूप से उसके उसके परिवार व वातावरण से सम्बन्धित हैं इसलिए सुझावों- सुधारों में भी इन्हीं तत्वों की भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी।यह तो निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है ।घर परिवार विद्यालय व वातावरण ऐसे पहलू हैं जिनसे बालक प्रगति का सर्वोच्च शिखर स्पर्श कर सकता है बशर्ते कि सभी का सहयोग सकारात्मक हो संघर्षपूर्ण अथवा नकारात्मक नहीं।
हम अशक्त बालकों की सहायता उनका सुधार सहयोग निम्नलिखित उपायों को अपनाकर कर सकते हैं:-
—- अशक्त बालकों के माता-पिता को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर उनकी समस्याओं को समझना चाहिए।
—- ऐसे बालकों को अतिसुरक्षा की आवश्यकता होती है अतः उनके माता-पिता को उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर समय से पूरा करते रहना चाहिए और निजी सुरक्षा पर भी ध्यान रखें।
—- परिवार के अन्य सामान्य बालकों से अशक्त बालक की कभी तुलना नहीं करनी चाहिए।माता-पिता बल्कि उसको साथ-साथ उठने-बैठने खेलने व कार्य करने को प्रोत्साहन देना चाहिए। परस्पर सहयोग का वातावरण बनाने का अवसर उपलब्ध करवायें।
—- माता-पिता व उसके परिवारजनों द्वारा अशक्तता की स्थिति में बालक द्वारा की जा रही अनुचित मांगों की पूर्ति कदापि नहीं करनी चाहिए अन्यथा बालक यही समझेगा कि चीखने चिल्लाने व जिद करने से वह अपनी जो चाहे मांग पूरी करवा सकता है।
—- कक्षा व विद्यालय में शिक्षकों को चाहिए कि उसके साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करने के लिए बालकों को प्रात्साहित करें।स्वंय भी सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर मित्रवत व्यवहार रखें।
—- उसके साथ सकारात्मक व्यवहार करने के लिए अन्य बालकों को प्रोत्साहित करें। स्वंय माता-पिता भी सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर मित्रवत व्यवहार रखें।
—- शिक्षण के समय उनको ऐसा कार्य देना चाहिए जिसे वे सरलतापूर्वक व जल्दी कर सकें। उनमें जिम्मेदारी की भावना भी जगायें।
—- माता-पिता को अपने बच्चों के मित्र अशक्त बच्चों की उपेक्षा न करके उन्हें अपने घर आने का निमन्त्रण देना चाहिए तथा प्रत्येक सम्भव सहयोग व प्रोत्साहन देते रहना चाहिए।
—- बच्चे सर्वाधिक अपने माता-पिता से प्रभावित होते हैं इसलिए आवश्यक है कि माता-पिता के परस्पर और बालक के साथ सम्बन्ध सदैव मधुर व स्नेहपूर्ण हों उनमें बात- बात पर लड़ाई- झगड़ा व मार-पीट न होती रहे।
—- माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों विद्यालय को अशक्त बच्चों से अत्यधिक अपेक्षा न कर उनकी क्षमता व शक्ति को समझना चाहिए अधिक महत्वाकांक्षा पालने से बालक में आत्मविश्वास कम हो जाता है वह अपने को हीन समझने लगता है।
—- अशक्त बालकों को सभी पक्षों की ओर से यह अनुभव करना चाहिए कि वह प्रत्येक कार्य को करने में सक्षम है तथा सभी उसके सहयोगी हैं।
—- अशक्त बालकों के साथ मित्रवत व्यवहार सहयोग की भावना सदैव चेहरे पर मुस्कराहट के साथ मिलना चाहिए।प्रत्येक बार मिलने पर नमस्ते नमस्कार आदि सम्बोधन करना प्रत्येक अच्छे कार्य के लिए प्रोत्साहन देने से बालक में सुधार होगा।
—- बालक को बिल्कुल उन्मुक्त वातावरण मिलना चाहिए।साथ ही उसको यह भी अनुभव होना चाहिए कि वह कार्य करने के लिए स्वतंत्र है।उस पर घर-परिवार या विद्यालय का अनावश्यक नियंत्रण नहीं है।
— अशक्त बच्चों की सहायता करते समय उनकी भावनाओं को समझ लेना चाहिए।
—- चूंकि परिवर्तन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है इसलिए अशक्त बालकों के सुधार हेतु शीघ्रता न कर र्धर्य का परिचय देना चाहिए और उनकी भावनाओं का आदर करना चाहिए।
इस प्रकार उपरोक्त विवेचनोंपरान्त यह कहा जा सकता है कि बच्चों का अशक्तता के लिए अनेकानेक कारणों में से अधिकांश घर- परिवार व उसके आस-पास के वातावरण से सम्बन्धित हैं तो सुधार परिष्कार भी उसके घर परिवार एवं वातावरण के माध्यम व सहयोग से ही सुगमतापूर्वक हो सकता है।उपाय अथवा सुझाव कोई भी हो उसकी सफलता अपनाये जाने के ढंग और माध्यम के साथ-साथ बालकों की सहभागिता पर भी निर्भर करती है।
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