“मुक्तक”
पंक्षी अकेला उड़ा जा रहा है।
आया अकेला कहाँ जा रहा है।
दूरी सुहाती नहीं आँसुओं को-
तारा अकेला हुआ जा रहा है।।-1
जाओ न राही अभी उस डगर पर।
पूछो न चाहत बढ़ी है जिगर पर।
वापस न आए गए छोड़कर जो-
वादा खिलाफी मिली खुदगरज पर।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी