कविता

आँखे कुछ बोलती है

तुम्हारी आँखे मुझ से कुछ बोलती है
जाने अनजाने राज खोलती है

नज़रे टकराकर जब झुक जाती है
बिना कुछ कहे जब वो रुक जाती है

दिल करता है पूछ लू एक बार
क्या है आँखो में सुन लू एक बार

पर रुक जाता हु तुम्हारी सूरत देख कर
कुछ जाने अनजाने सवाल सोच कर

फिर भी तुम्हारी आँखे कुछ बोलती है
जाने अनजाने राज खोलती है

रवि प्रभात

पुणे में एक आईटी कम्पनी में तकनीकी प्रमुख. Visit my site