अंतर्द्वंद
अक्सर मौन हो जाती हुँ
विचारों के उलझे प्रश्नों से
जैसे मन को डसता हुआ सवाल और
घायल होता जवाब
कुछ हलचल मचाते शब्दों के झुंड
इतना करते हैं परेशान
जैसे खुली खिड़की से
नजर आता हो भयानक तूफान
मन का उतावलापन
हृदय की ब्याकुलता
अक्सर तोड़ डालती है धैर्य की सीढ़ियों को
खामोशियाँ उठाती है आवाज
संतुलन लेता है विराम
शब्दों का कोलाहल करती प्रश्नों का बौछार
कब, क्यों, कैसे और न जाने क्या- क्या
पर मरा हुआ प्रतीत होता जवाब
लेकिन, सवाल जिन्दा रहता अंत तक
एक नए प्रश्न के साथ नए जन्म में।
बबली सिन्हा