बिसरी यादों के साए जब…
बिसरी यादों के साए जब,
हमसे आ लिपटे।
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे।।
बन चलचित्र चला बचपन का,
हर प्यारा मंज़र।
उतर गया फिर से आँखों में,
मिट्टी वाला घर।।
जब जब करी शरारत माँ के
आँचल में सिमटे…
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे…
हरे-भरे खेतों की मोहित,
करती हरियाली।
अमराई के बाग कूकती,
थी कोयल काली।।
शस्यश्यामला धरती ऊपर,
श्यामल मेघ घुटे…
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे…
तरुणाई के सारे साथी,
जाने कहाँ गये।
खुशियों के वो दीपक बाती,
जाने कहाँ गये।।
उनके बिन सब कुछ होते भी,
हम हैं लुटे लुटे…
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे…
काश लौट आता जीवन में,
एक बार बचपन।
तो कुछ पल जी लेते फिर से,
जीवन में जीवन।।
जब उतरे पल आँखों में जो,
थे हँस खेल कटे…
अंतर्मन में दबे दर्द के,
ज्वालामुखी फटे…
सतीश बंसल
०३.०६.२०१८