ग़ज़ल-2
इन आंखों में माना समंदर छुपा है
छुपेगी कहां दिल की ये बेकरारी ।
तू फिर सितम पे सितम आजमा ले
के अब दर्द सहना है आदत हमारी।
खुद से निकल तेरे दिल में रहे बस
नही सीखी दूनिया की ये दुनियादारी।
गुनाह हो गया है घर से निकलना
शरीफों की बस्ती में है शिकारी।
कोई जाके उनका ज़रा हाल देखें
कि नासाज है आज तबियत हमारी।
वादा जो टूटे मोहब्बत में जानीब
तो चली जान जाए हमारी तुम्हारी।
— पावनी जानिब, सीतापुर