खोता खुशियाँ सपनों की……….
ठाठ खो चूका, खुशियों के दिन रात खो चूका,
बरबादी के क्षण में बाट देखता अपनों की
माँ के माँ की, माँ की और मेरी है जन्मस्थली
फूटे नारिया खपडों से, गिरते बारिस के बूंदों से,
खोता खुशियाँ सपनों की……….
आँगन में खड़े कैथ को कभी नहीं खाया,
नीम पेड़ में डाल झूलना, खुशियों को ही पाया,
कटहल के मीठे कोओं को बाटना भाता है,
नानी का नैहर माँ का ननिहाल याद आता है
वो गाँव याद आता है……….
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045