ख्यालात
उलझे उलझे से ख्यालात
कर जाते हैं बैचैन मुझे ,
खुश रहने की जिद में
और भी उलझ गयी जिंदगी ।
बहके बहके से जज्बात
रुलाते हैं मुझे ,
रुत प्यार की पतझड़
बना गयी जिंदगी ।
टूट कर बिखर न जाए
शीशे जैसा दिल ,
मना ले मुझे बहुत नाराज हूँ
खुद से ऐ मेरी बोझिल सी
तन्हा जिंदगी।
एक दिन चली जाऊंगी सबसे दूर ,
डोर हूँ पतंग की नाजुक सी ।
अब और न रुला मुझे
ओ मेरी हमदर्द जिंदगी ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़