जज्बात
जज्बातों में भीगा हुआ कुछ तन्हा सा मुकाम था
कुछ लफ्ज थे उलझे हुए कुछ तन्हाई का पैगाम था
समझाया था दिल ने मेरे छोड़ दे उम्मीद किसी से
न माना था ये दिल मेरा गहराई का अहतराम था ।
हर पल रोये हम तेरे लिए क्यों दौर ये तन्हाई का है ,
आजा सनम रो रहा दिल रहनुमाई ही अंजाम था ।
बेबफाई तेरी न मार दे सिसकते हुए अरमान को ,
चिंता बन गयी अब चिता सनम इंतजार बेनाम था ।
सिसक रहे हैं अल्फाज भी जख्मी कागज हुआ
बिखर गई स्याही भी यही तो इश्क़ का इनाम था ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़