ये सच अगर होता
ये सच अगर होता, की कुछ भी देखता नही।।
पत्थर की आँखें धीरे से, वो पोंछता नही।।
ज़ख्मों पे मरहम, दूर से रखता रहा है वो।
कहता ज़रूर है, किसी से वास्ता नही।।
उनसे मिले क्या, ‘काश’ और बढ़ गए देखो।
दरिया है ख्वाहिशों का, कभी सूखता कहीं ।।
बरसों गये फिर भी नज़र, मुड़ती रोज़ ही।
नाता गुज़री गली से, मेरा छूटता नही।।
है पास चाँद के कभी, कुछ दूर वो तारा।
शिकवा नही करता, कभी टूटता नही।।
सुनते थे डोर प्यार की, मजबूत है लेकिन।
ऐसा जो होता, बारहां वो रूठता नही।।
रिश्तों के नाम चाहे तुम, कुछ ही भले रख लो।
ख्वाहिश सुकूँ की है, हर एक ढूंढता वही।।