गीतिका/ग़ज़ल पद्य साहित्य

दर्दो गम से मिलेगी

  दर्द-ओ-गम से मिलेगी पर, निजात आहिस्ता। बदलेंगे, बदलेंगे, अपने हालात आहिस्ता। तेरे जाने से, ज्यादा कुछ नहीं बदला है पर। दिन गुज़रता है आहिस्ता से, रात आहिस्ता। अरसा पहले बता चुका है यूँ तो दिल हमको। होठों तक आएगी शायद वो बात आहिस्ता। दिल जलाने को कहे जाती है दुनिया कितनी। आ उड़ा दें […]

गीतिका/ग़ज़ल पद्य साहित्य

दस्तक दी दिल पे हल्की सी

फिर तेरी याद ने दस्तक दी दिल पे हल्की सी।। आँखों की गोद से शबनम रुखों पे ढलकी सी। यूँ तो अरसा हुआ तेरी गुज़र को देखे हुए। बात लगती है जैसे आज की सी, कल की सी। क्या बयानी करूँ मैं मंज़र-ए-रुखसत की भला। उसके बढ़ते कदम, थी जां मेरी निकलती सी। ज़िंदगी देखिए […]

गीतिका/ग़ज़ल पद्य साहित्य

इस दर्द को

इस दर्द को निभाना सीखो। करता है जो ज़माना सीखो।। बहाने ढूंढने से न मिले तो, बिन बात मुस्कुराना सीखो। तोहमतों से खौफ खाते हो, तो तस्सवुरों में आना सीखो। रह न पाओ जिनके बिना, उन सब को मनाना सीखो। बेज़ारी अपनों से नही अच्छी, नरमी लफ़्ज़ों में लाना सीखो। हसरतों से कह दो जा […]

गीतिका/ग़ज़ल पद्य साहित्य

झट से अलग हुआ है

झट से अलग हुआ है मेरे मामले से वो। जैसे रिहा हुआ किसी सिलसिले से वो।। मेरी कमी को हर दफा महसूस करेगा, जब भी कभी गुज़रा करेगा रास्ते से वो। दौड़ कर वो इस तरह आया मेरे करीब, जैसे अभी लगायेगा मुझको गले से वो। अबकि जो होगा सामना देखूंगा गौर से, नज़रें चुराए […]

गीतिका/ग़ज़ल पद्य साहित्य

कीजिये यकीन मेरा

कीजिये यकीन मेरा, कि ये गुस्ताखी नहीं। और रखिए आप, इतनी रंजिशें काफी नहीं।। आपको है क्या ज़रूरत, यूँ उठाने की कसम। आदतें तो शख्सियत से इस तरह जाती नहीं।। कर दिया होगा, रिहा करने का वादा आपने। बुलबुलें कैद-ओ-कफ़स में, यूँ कभी गाती नहीं।। पूछ कर न बारहां मुझको यूँ रुसवा कीजिये। इतनी मारी […]

गीतिका/ग़ज़ल पद्य साहित्य

गैर से हाथ

  ग़ैर से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है। फासला और बढ़ाने की ज़रूरत क्या है।। असली सूरत नहीं जो देखना चाहे, उसको। आईना घर मे सजाने की ज़रूरत क्या है।। अपनी ज़िद में तू रहे और मैं अपनी ज़िद में।। इस तरह साथ निभाने की ज़रूरत क्या है।। माना कि दूर तलक राह अंधेरी […]

गीतिका/ग़ज़ल पद्य साहित्य

हर ओर है

हर ओर है शक का ज़हर तो क्या कीजिये।            बारूदी है शहर शहर तो क्या कीजिये।। सो जाता हूँ यूँ बार बार आँख मूँद के। जब दूर दिख रही सहर तो क्या कीजिये।। ज़ुबान हुई जा रही शहद में तरबतर। दिल मे लिए बैठा ज़हर तो क्या कीजिये।। ख्वाहिश हो […]

गीत/नवगीत पद्य साहित्य

क्यों खोजे महल दुमहले

क्यों खोजे महल दुमहले तू, क्या जाने कब तक डेरा है। इस आनी जानी दुनिया में, है जितना भी बहुतेरा है। चहुँ ओर लिए पिंजरे पिंजरे, सैयाद फिरे बिखरे बिखरे, पंखों में भर विश्वास तू उड़, ये नील गगन बहुतेरा है। कोई क्यों साथ भला देगा, जितना देगा दुगना लेगा, क्यों जोहे बाट तू औरों […]

गीत/नवगीत पद्य साहित्य

मन के दर्पण

अधरों को अपने खोल ज़रा। मन के दर्पण कुछ बोल ज़रा। चुप्पी ज्यादा बढ़ जाए न, ज़िद्द के ताले जड़ जाएँ न, जींवन छोटा पड़ जाए न, तू खुद ही खुद को तोल ज़रा। मन के दर्पण कुछ बोल ज़रा। दूजों से हँस कर मिलता है, हर कहे पे उनके चलता है, पर तुझे ज़हर […]

गीत/नवगीत पद्य साहित्य

कंठ तब होता मुखर है

कंठ तब होता मुखर है। भाव जब होता प्रखर है। भीतर बवंडर डोलता है, और हृदय ये बोलता है, टीस हर अपनी छुपा ले, सिसकियां गहरी दबा ले, वेदना आँखों से बहती, बांध तोड़ तोड़ कहती, उंगलियों के बीच अब तू, ले कलम यूँ खींच अब तू, अश्रुओं को दे के वाणी, अब सुना भी […]