ग़ज़ल : एक लम्हा ज़हन पे तारी है
एक लम्हा ज़हन पे तारी है
फिर भी मन की उड़ान जारी है
किस तरह दिल को अपने समझाएं
खेलना सबको अपनी पारी है
सत्य तो कोई जानता ही नहीं
जाने अब आई किसकी बारी है
उसकी मर्ज़ी है किधर भी बैठे
जिंदगी ऊंट की सवारी है
इस गलतफहमी में जी रहे हैं सब
हमने किस्मत स्वयं संवारी है
हार और जीत नहीं दो पहलू
बाजी बस ज़िन्दगी ने हारी है,
हम सभी खेल चुके ये चौसर
अब निकलने की ही तैयारी है
वक्त का शाह खेलने निकला
जीत भी तय हुई हमारी है
कटना हर हाल हम सभी का है
समय के हाथ तो दुधारी है
— मनोज श्रीवास्तव