लघुकथा –सम्मोहन
हर्ष और मीता विवाह के बाद हनीमून पर घूमने अपनी कार में शिमला जा रहे थे| दोनों बहुत खुश मुड में गुनगुनाते और मुस्कराते जा रहे थे| हर्ष को जम्हाई सी आने लगी बोला, “कुछ खा लें, आराम भी हो जायेगा और धर्मपुर के नज़ारे भी देख लेंगे|” दोनों होटल में जा रहे थे, तभी सामने के टेबल पर एक सुंदर स्त्री अपने बच्चे साथ बैठी दिखी| हर्ष बोला, “कितनी सुंदर! इसके पास ही बैठते हैं, जरा आँखों को सुंदर नजारा मिलेगा| ये औरत लगता बच्चे के साथ अकेली है|” कनखियों से देखते उसका जायजा लेता रहा| वो भी बहुत अदा से नज़रें घुमा चाय की चुस्कियाँ लेती रही और बच्चे को शरारतें करते प्रताड़ित कर रही थी| मीता मन ही मन कुढ़ती बोली, “ठरकी हो, अपनी नई नवेली पत्नी के सामने ऐसी हरकतें करते हो, अब मैं बात नहीं करुँगी आपसे|” हर्ष हंसता बोला, “मेरी नबेली पत्नी यूँ ही तुझे चिढ़ा रहा हूँ|” ओरत का बच्चा शरारती था और भागकर हर्ष के पास आकर अंकल कह बोला, “आप खाना खा रहे हो, मुझे नहीं खिलाओगे, मुझे पूरी अच्छी लगती है, पर मम्मी गला खराब होने की वजह से खाने नहीं देती|” हर्ष ने पहले सोचा खिला देता हूँ पर ये बात सुन इरादा बदल दिया| उसके लिये चाकलेट लेकर देने लगा | बच्चा तो शरारत में पर्स ही हाथ से छीन ले गया| बच्चा आगे भागा और हर्ष उसका पीछा करता होटल के बाहर भाग गया| मीता परेशान हो उसकी माँ को ढूँढने लगी लेकिन वो भी गायब हो गई| हर्ष खाली हाथ लटकाते आ गया बोला ऐटीएम कार्ड लाईसेंस सब ही तो पर्स में था| अब पुलिस में रिपोर्ट करनी पडेगी| होटल के मालिक की मदद मांगी वो बोला, “कितने लोग आते जाते हैं हमें ध्यान नहीं कौन थी वो|” दोनों का मूड खराब हो गया और वापसी करने पर बात आ गई, तभी होटल का दरबान बाहर से गिरा पर्स उठा कर लाया और बोला, “साहब ये बाहर गिरा था, देख लों ठीक से आपका ही है|” हर्ष ने देखा के पर्स में कागज तो सभी थे लेकिन पैसे नदारद थे| मीता उसे कसम चुकाती, “अब प्रण करो कि पराई नार और बच्चे के सम्मोहन में नहीं आओगे|”
— रेखा मोहन