पितृ दिवस पर अपने पिता की याद के साथ… एक कुंडलियाँ
कदकाठी मजबूत हो, या हो कोमल देह।
जीवन के हर मोड़ पर, मिले पिता का नेह।
मिले पिता का नेह, न सूना हो ओसारा।
मैका माँ के संग , पिता सँग खुलता द्वारा।
“गुंजन” का दुर्भाग्य, छोड़ के गयी है लाठी।
वो कोमल सी देह, पुष्ट सी थी कदकाठी।
……. अनहद गुंजन अग्रवाल