लघुकथा

दरकते रिश्ते

जेठ का वह भी अधिक जेठ का मास, शिमला में जलसंकट, बारिश के इंतजार में उत्तराखंड के दहकते जंगल, ताल-तलैया सूखे, नदी सिकुड़कर बन गई थी नाला, गांव के सारे हैंडपंप खराब, सिर्फ एक कुआं, जिसमें भीड़ लगी रहती है और बमुश्किल दो-चार बाल्टी पानी मिल पाता है. लोग एक अदद बाल्टी पानी के लिए घंटों लाइन लगाए खड़े रहते हैं. हमेशा की तरह बुंदेलखंड में पानी की ज्यादातर जिम्मेदारी महिलाओं पर डाल दी गई है. पूरे दिन उन्हें पानी के लिए खटना पड़ता है. ऐसे में चंदपुरा के सुखलाल की पत्नी सावित्री के पास चैन की सांस लेने के लिए मायके चले जाने के सिवाय कोई चारा नहीं रहा था.

 

सुखलाल के दुःख के दिन शुरु हो गए. घर में पानी का गिलास तक खुद न उठाकर पीने वाले सुखलाल के लिए एक किलोमीटर दूर सिकुड़ी नदी से पानी लाना आसान कहां था? ऊपर से कमाई की चिंता अलग. दहकती लू में नाजुक-सी सावित्री के पानी लाने की पीड़ा उसे अब समझ में आई थी, जब दिलजले सूखे ने उसके महकते रिश्तों को दरका दिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दरकते रिश्ते

  • लीला तिवानी

    दूसरे की पीर आसानी से समझ नहीं आती. पानी की किल्लत कह्प्ते हुए भी रिश्ते महकते रहते हैं. अति सबकी बुरी होती है. जब सारा दिन तपती लू में पानी के जुगाड़ में निकल जाए, तो रिश्तों में दरकने की संभावना बन जाती है, सुखलाल के साथ भी ऐसा ही हुआ.

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