क्यों बन जाते हैं बच्चे जिद्दी
सामान्यतः हम अपने आस-पास के अभिभावकों को कहते सेनते हैं कि मेरा बच्चा जिद्दी हो गया है। बहुत जिद करता है। किसी चीज के लिए अड़ जाता है तो बिना लिए मानता ही नहीं है। क्यों बन जाते हैं बच्चे जिद्दी क्या कारण हैं कोमल मस्तिष्क वाले सुकुमार बालक जिद क्यों करने लगते हैं।इन सभी प्रश्नों के उत्तर बालक के आस-पास की परिस्थितियों माता-पिता के व्यवहार व दैनिक क्रिया-कलापों के गहन अध्ययन मनन और विश्लेषण से पाये जा सकते हैं।कभी- कभी माता-पिता का अकेला बालक बड़ा ही लाडला रहता है।घर से विद्यालय तक दरवाजे से खेले के मैदान तक अपनी महत्वता दर्शाना चाहता है।जिसमें माता-पिता व शिक्षकों की लापरवाही से जिद्दीपन की भावना जन्म ले सकती है।वह अपने को बलात् नेतृत्वकर्ता प्रमाणित करना चाहता है।बात से नहीं लात से मनवाना चाहता है।
यदि माता-पिता बालक की गलतियों को निरन्तर अनदेखा कर रहे हैं। उसकी उचित इच्छाओं की पूर्ति न कर अनुचित मांगों को पूरा कर रहे हैं।उसकी जिज्ञासाओं की पूर्ति समय व आवश्यकतानुसार नहीं कर पा रहे हैं। उसे अपनी जिज्ञासा को स्वंय जानने घूमकर देखने की पर्याप्त स्वतन्त्रता नहीं है खाने पीने व स्पर्श करने पर अनुचित बन्धन है। पर्याप्त मनोरंजन के साधन नहीं है अथवा उनके लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जा रहा है। तो एक समय ऐसा आयेगा कि आपका बालक अहंकारी झगड़ालू प्रवृत्ति से युक्त तोड़-फोड़ करने वाला हो जायेगा और वह प्रत्येक कार्य व इच्छा की पूर्ति के लिए जिद करेगा। रोना-पीटना चीखना चिल्लाना उसके लिए सामान्य बात हो जायेगी।
माता-पिता द्वारा अपने आस-पास के बालकों से तुलना की भावना अपने बच्चों में रखना व उसी दृष्टि से उसको देखना सीख देना उनको सदैव हीन या श्रेष्ठ बतलाना जिद्दी बना देता है। पड़ोस के बच्चों की अन्धी नकल भी जिद करने की एक कारण होती है।वह अपने को अन्य बालकों से अति विशिष्ट समझने लगते हैं प्रत्येक स्तर पर श्रेष्ठता की जिद करने लगते हैं।
माता-पिता का व्यवहार यदि अपने बालक के प्रति सहज व स्वाभाविक नहीं है।मित्रवत न होकर असहयोगात्मक है।तो बालक जिद्दी हो जायेगा।पितृत्व हेतु कोई स्कूल नहीं हो सकता।जहां सीखा जा सके बल्कि इसके लिए माता-पिता को अपने बालक की मनोवृत्ति को निरन्तर सूक्ष्मता से परखते रहना चाहिए।उनमें आ रहे बदलाव को कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए।उनके प्रति तानाशाह की जगह सच्चा साथी बनने का प्रयत्न होना आवश्यक है। जिससे कि जिद्दीपन की ओर बालक न झुके और न ही उसकी जिद के आगे माता-पिता को अनचाही परेशानियों से गुजरना पड़े।
जब माता- पिता अधिक अविश्वसनीयता के शिकार हो जाते हैं तो उन्हें अपने बच्चों पर बहुत कम विश्वास रह जाता है।वे बालक के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। उन्हें मनमानी करने देते हैं।किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं रखते तो आगे चलकर बालक जिद्दी हो जाता है।यदि उन पर प्रारम्भ से ही ध्यान दिया जाता तो वह जिद नहीं करता और न ही अकारण आये दिन उसके जिद्दीपन से परेशानी उठानी पड़ती।
माता- पिता के द्वारा बालक की इच्छाओं की निरन्तर पूर्ति करते रहना उनकी दिनचर्या को न देख व समझकर छोड़ देना जिद्दी बना देता है।जिससे वह समय-असमय अपनी मांग मनवाने के लिए जिद करता है।कभी-कभी अनुचित मांगों के लिए अड़ भी जाता है रोने-चिल्लाने व चीखने लगता है।अपने छोटे भाई बहिनों को पीट देता है।उनके खेल-खिलौने तोड़ देता है।ऐसी परिस्थिकतयां उत्पन्न न हों इसके लिए माता-पिता को अपने बालक की सम्पूर्ण दिनचर्या व व्यवहार पर सूक्ष्म दृष्टि रखनी चाहिए। उन पर ध्यान देते हुए समयानुसार आवश्यक कार्यवाही करते रहना चाहिए। साथ ही देखना चाहिए कि कहीं अनजाने में ही उनका बालक जिद्दी तो नहीं होता जा रहा है अथवा उसके मन मस्तिष्क में यह तो भावना नहीं बैठ रही है कि जिद करने से वह अपनी किसी भी मांग की पूर्ति करवा सकता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त भी बच्चों के जिद्दीपन के शिकार होने के अन्यान्य कारण हो सकते हैं। जिनकी परिस्थितियों को उनके परिवार की पूर्ण स्थिति के अवलोकन से समझा जा सकता है तथा सभी के पारस्परिक समंजन से निराकरण भी किया जा सकता है।
जिद्दीपन से बालकों को बचाने कि लिए अथवा जिद्दी बन चुके बालकों में सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:-
—- बालकों की इच्छाओं आवश्यकताओं को समय से पूरा किया जाये।अधिक आयु अथवा समान आयु के अनैतिक तत्वों से बालकों का सम्पर्क न होने दिया जाये।जिससे बच्चे कभी-कभी बड़ों जैसी हरकतें करने लगते हैं।
—– बालकों की अनावश्यक तुलना से बचना वाहिए।उनकी आयु व मनोदशा से बढ़कर अपेक्षाओं को नहीं पालना चाहए और न ही अनावश्यक दबाव डालें।
—– बालकों की रुचि-अरुचि का ध्यान रखते हुए उनके मनोरंजन का भी ध्यान रखना चाहिए।पर्याप्त मनोरंजन के साधन व समय न मिलने से वह तोड़-फोड़ अथवा मार-पीट की ओर उन्मुख होते हैं।
—– किसी भी स्तर पर बालकों की अनुचित मांगों की पूर्ति न कर उनको अपनी गलत मांगों का अनुभव कराना चाहिए। साथ ही उनके उचित व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक इच्छाओं की तत्काल पूर्ति करनी चाहिए।
—– बच्चे के प्रति माता-पिता का स्नेह पूर्ण व्यवहार पूर्ण आत्मीयता लिए होना चाहिए। पति-पत्नी में भी जिद करने बात-बात में अड़ जाने की आदत बसलक को अनचाहे ही जिद्दी बना देती है।
—– बालक का अपना स्वंय का व्यक्तिव इच्छायें व आवयकतायें होती हैं उसका साथी- समूह होता है। इसलिए ऐसी घटनाओं व्यवहारों से घर-परिवार के सदस्यों को बचाव करना चाहिए। जो बच्चों पर दुष्प्रभाव डालें।
बाल मनोवृत्ति से उत्पन्न समस्या कोई भी हो रुठने की चिल्लाने अथवा जिद करने की।सभी का समाधान बालकों की मनोवृत्ति को पूर्णतया समझकर उसके माता- पिता और परिवार के अवलोकन के बाद सहयोगात्मक वातावरण में किया जा सकता है।साथ ही अन्य कम आयु के बालकों को जिद्दीपन का शिकार होने से बचाया जा सक
— शशांक मिश्र भारती
(जल्दी आ रही लेखक की बालमनोविज्ञानपरक कृति “क्यों बोलते हैं बच्चे झूठ” से.)