कविता

पिता

मेहनतकश को पूजता
पसीने से सराबोर
जब देखता है
मुस्कुराहट अपने नौनिहाल की
तो छिटक देता है पसीना
माथे से उठाकर
भूल जाता है सारी
पीड़ाएं ,दर्द और ठोकरें
जो उसने खाई है
एक सुनहरा भविष्य देने के लिए
मां की आंचल में पलता बढ़ता है
लेकिन मां को छाया ,नौैनिहाल का पिता देता है
झेल जाता है सारे तूफान ,बारिश,आंधी
दो कदम जब चलता है ननिहाल
मुस्कुराता है तो भूल जाता है
उन दरारों को जो तूफानों से आई
उसकी पीठ पर

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733