महान थे महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप ने आजादी के लिए संघर्ष किया। इसके लिए सर्वश्व न्योछावर करने का उनमें जज्बा था। राष्ट्रीय स्वाभिमान से समझौता उन्हें मंजूर नहीं था। इसी के साथ उनका नैतिक बल भी बेजोड़ था। यही वह तथ्य है जिनके बाल पर महाराणा भारतीय इतिहास के महान शासक माने जाते है। वह न केवल महान थे ,बल्कि वह राष्ट्रनायक भी थी। इतिहास के पृष्ठ पर किसी को भी महान लिखा जा सकता है, लेकिन मुख्य बात यह है कि समाज किसको महान मानता है। महाराणा के जीवन का प्रत्येक पहलू प्रेरणा देता है। वह आजादी के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर थे। उन्होंने वनवासियों को साथ लेकर संघर्ष किया। यह समरसता का सन्देश था। विश्व मे ऐसा कोई मुल्क नहीं जहाँ स्वतंत्रता के ऐसे सेनानी को महान न मानकर उनसे युद्ध करने वाले को महान कहा जाय। इतिहास की यह विकृति दूर होनी चाहिए। इतिहास केवल अतीत की जानकारी देने के लिए नहीं है। बल्कि इसके गौरवशाली प्रसंगों से भावी पीढ़ी को प्रेरणा लेनी चाहिए। इस संदर्भ में इतिहास का सही लेखन भी अपरिहार्य होता है। राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले महान होते है। महाराणा प्रताप ने यदि अपने और अपने परिवार को सुविधाओं को वरियता दी होती तो वह भी राजसिंहासन पर बने रह सकते थे। इसके लिए उन्हें अकबर के द्वारा प्रेषित आधिपत्य प्रस्ताव को स्वीकार करना पड़ता।
अकबर को राजस्व का अंश देना पड़ता , इसके बदले में राणा प्रताप अपने महल में सुख सुविधा के साथ रहते। पराधीनता का एक तमगा ही तो लगना था। अनेक भारतीय राजा यह प्रस्ताव स्वीकार कर चुके थे।
लेकिन महाराणा प्रताप भी ऐसा करते तो आज उन्हें राष्ट्रनायक के रूप में याद नहीं किया जाता। उन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए उन्होंने निजी हित बलिदान कर दिए। महलों की सुविधा और वैभव छोड़ कर जंगल मे घास की रोटी खाने पसन्द किया। लेकिन आक्रांताओं की गुलामी मंजूर नहीं की। इसी लिए वह महान थे। भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा की विभूति बन गए। अकबर और राणा प्रताप एक साथ महान नहीं हो सकते। दोनों विपरीत ध्रुव पर थे। दोनों के बीच संघर्ष था। अकबर गुलाम बना रहा था , राणा प्रताप स्वतंत्र रहना चाहते थे। इसलिए भारत के राष्ट्रीय सन्दर्भ में महाराणा प्रताप को ही महान कहे जायेगे। प्रेरणा उन्हीं से लेनी होगी। उनके स्वाभिमान से सीखना होगा। वह वनवासियों को साथ लेकर युद्ध करते है , इस भाव को समझना होगा। उन्हीं के सहयोग से अपने राज्य को प्राप्त करते है। शौर्य ऐसा कि अकबर भी सामने आने का कभी साहस नहीं कर सका।
हल्दीघाटी युद्ध अनिर्णायक रहा किन्तु तय हुआ कि अकबर में प्रताप का भय था उसने महाराणा प्रताप से युद्ध के लिए भी राजपूत मानसिंह और अपने बेटे को भेजा था। वह जानता था कि राणा प्रताप के सामने आने से उसकी महाबली वाली छवि बिगड़ जाएगी। हल्दीघाटी के बाद भी राणा का संघर्ष जारी रहा।
वह सेना सहित युद्ध स्थल से हटकर पहाड़ी प्रदेश में आ गए थे। बाद के कुछ वर्षों में अपने राज्य पर फिर अधिकार कर लिया था। सन् पन्द्रह सौ सत्तानबे में चावंड में उनकी मृत्यु हो गई थी। जीते जी उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। राजपूत राजाओं में महाराणा प्रताप ही ऐसे थे, जिन्होंने अकबर की मैत्रीपूर्ण दासता को ठुकरा दिया था।
हल्दीघाटी के बाद भी राणा ने विश्राम नहीं किया। वह आजादी के लिए लड़ते रहे। अंग्रेजों ने अनिर्णीत रहे हल्दीघाटी युद्ध की खूब चर्चा की ,लेकिन दिवेर युद्ध का नाम नहीं लिया ।इसमें राणा विजयी रहे थे। प्रसिद्ध दिवेर युद्ध की योजना महाराणा प्रताप ने कालागुमान पंचायत के मनकियावास के जगलों में बनाई थी। हल्दीघाटी युद्ध के बाद राणा प्रताप अरावली के घने जगलों एवं गुफाओं में वास करने लगे।चूलिया ग्राम में थे, तब भामाशाह व उनके भाई ताराचंद वहां आए।
उन्होंने महाराणा प्रताप को पच्चीस हजार सैनिकों के बारह वर्ष तक निर्वाह कर पाने लायक मुद्रा भेंट की। प्रताप ने दिवेर को जीतने की रणनीति व तैयारी के लिए मनकियावास के जगलों को चुना। घने जगलों में जंगली बिलाव खूब थे, जिससे गांव का नाम ही मनकियावास हो गया। आत्मसुरक्षा के साथ ही आमेट, देवगढ़, रूपगनगर एवं आसपास के ठिकानों से मदद पाने की दृष्टि से भी यह स्थान सुरक्षित था। राणा ने पन्द्रह सौ बयासी में विजयदशमी के दिन पूरी ताकत से दिवेर पर आक्रमण किया। शाही थाने का मुख्तार अकबर का चाचा सुल्तान खां था। मुगल व प्रताप की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ था जिसमें राणा विजयी हुए थे। जाहिर है ,जो कार्य अंग्रेजो ने आजादी के पहले किया ,आजादी के बाद वामपंथी इतिहासकारों ने उसी को ही आगे बढ़ाया। उन्होंने भी दिवेर विजय का तरजीह नहीं दी। यह सब इस लिए था कि लोग अकबर को महान समझें। महाराणा को महान मानने से राष्ट्रवाद की प्रेरणा मिलती है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ के एक कार्यक्रम में महाराणा प्रताप को महान क्या बताया ,उस पर भी राजनीति शुरू हो गई। बसपा प्रमुख सहित कई नेताओं के बयान आ गए। इनके लिए यह वोटबैंक का मसला हो गया । जिसमें अकबर को ही तरजीह देनी पड़ती है। जबकि महाराणा ने देश को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त रखने की हिमायत की थी। यह सही है कि इतनी शताब्दी बीतने के बाद यहां रहने वाले सभी भारतीय एक है। यह मुल्क इन सभी लोगों का है। लेकिन पांच सौ वर्ष पहले इन्हें विदेशी आक्रांता ही कहा जाता था। उस माहौल में अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाले मानसिंह जैसे लोगों का भारतीय समाज नाम लेना भी पसन्द नहीं करता था। ऐसे लोग महलों में रहते थे। लेकिन समाज में इनकी कोई इज्जत नहीं थी। राणा प्रताप जंगलों में रहने के बाद भी सम्मानित थे। उनके प्रति राष्ट्र का यह सम्मान कभी कम नहीं होना चाहिए। न तो इस विषय पर उनकी अकबर से तुलना होनी चाहिए। अकबर साम्राज्य विस्तारक था। हिन्दू कन्याओं से विवाह भी उसके अभियान का एक हिस्सा था। लेकिन ऐसा एक भी उदाहरण नहीं जिसमें उसने किसी हिन्दू युवक का विवाह मुस्लिम युवती से कराया हो।
आजादी के लिए संघर्ष करने वाले, इसके लिए महलों का वैभव त्याग करने वाले ,अपनी जान की बाजी लगाने वाले सदैव महान होते है। इस आधार पर महाराणा प्रताप न केवल महान थे ,बल्कि वह राष्ट्रनायक भी थी। उनके जीवन का प्रत्येक पहलू प्रेरणा देता है। वह आजादी के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर थे। उन्होंने वनवासियों को साथ लेकर संघर्ष किया। यह समरसता का सन्देश था। विश्व मे ऐसा कोई मुल्क नहीं जहाँ स्वतंत्रता के ऐसे सेनानी को महान न मानकर उनसे युद्ध करने वाले को महान कहा जाय। इतिहास की यह विकृति दूर होनी चाहिए। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में महान होने के भी सुनिश्चित मापदंड होते है। इसमें राष्ट्रीय और व्यक्तिगत चरित्र दोनों का आकलन होना चाहिए। महाराणा प्रताप दोनों ही पहलुओं पर अकबर से बहुत आगे थे। राणाप्रताप भरतवंशी थे, अकबर के दादा विदेशी आक्रांता थे। राणाप्रताप आजादी के लिए लड़ रहे थे , अकबर भारतीय राजाओं को गुलाम बंनाने का अभियान चला रहा था। महाराणा मुस्लिम महिलाओं तक का सम्मान करते थे। बाद में उन्होंने जितना राज्य जीता वहां मुगल सूबेदारों की महिला परिजनों को सुरक्षा व सम्मान दिया। उनकी तरफ आंख उठा कर देखने की किसी को इजाजत नहीं थी। दूसरी तरफ अकबर राजनीति के नाम पर राजपूत राजपरिवारों की महिलाओं से विवाह रचाया करता था। उसके हरम में अनगिनत महिलाएं थी। जाहिर है कि अकबर और महाराणा की तुलना बेमानी है। महाराणा ही वास्तविक रूप में महान है। उनसे प्रेरणा ली जा सकती है। अकबर का चरित्र प्रेरणा के लायक नहीं था। वह बहुत चालाकी से भारत में मुगलों की जड़ें जमाने के कार्य में लगा था। जाहिर है कि जब भी राष्ट्रीय सन्दर्भ में बात होगी तब महाराणा प्रताप को ही महान कहा जायेगा।
हल्दी घाटी में पहले से ही अकबर के तीन हजार सैनिक थे। मान सिंह पांच हजार सैनिक लेकर वहां अकबर की तरफ से युद्ध करने आया था। यदि मान सिंह भी महाराणा प्रताप का साथ देते तो भारत का इतिहास बदल सकता था। तब अकबर महान के रूप में नहीं आक्रांता के रूप में दर्ज होता। महाराणा प्रताप महान योद्धा थे। लेकिन मुगल व कई राजपूत राजाओं के मिल जाने से महाराणा को नुकसान उठाना पड़ा । उनका भाला इक्यासी किलो और कवच बहत्तर किलो का था। तलवार समेत अस्त्र और कवच का वजन दो सौ आठ किलो का था। विश्व के किसी भी देश में ऐसे ही योद्धाओं को इतिहास में महान माना जाता है।
— डॉ दिलीप अग्निहोत्री