मेरी कलम
जब से क़लम उठाई है,
तब से मन करता है,
कि जो लिखूँ सच लिखूँ
पर दुनिया हमें
ना सच लिखने देती है
ना बोलने !
आखिर करूँ तो क्या ?
फिर माँ ने कहा
बेटा दुनिया से ना डरो
हम सब तुम्हारे साथ है,
तुम लिखो जो लिखना
चाहती हो,
कहो जो कहना चाहती हो
जब तक हम है,
तुम्हारी कलम रुकनी नहीं चाहिए,
दुनिया को सच से रूबरू कराओ,
दुनिया को सच का दर्पण दिखाओ
चाहे उस सच को लिखते –
लिखते तुम्हारी जान ही
क्यों न चली जाए !