खुद फांसी को गर डाल रहा
गरज रहे हैं बादल आसमान में जमकर,
चमक रही है बिजली आसमान में जमकर।
हम बैठे हैं घरौंदों में बूंदों का लुफ्त उठाते,
बरस रहे हैं बादल देखो असमान में जमकर।।
कोई सड़क पर खड़ा हुआ तन-मन जिसका कांप रहा,
चमक दमक बिजली की देखे ताड़ित की मति भांप रहा।
डरता है वह खुले में है कोई बिजली आकर ना गिर जाये,
अनहोनी की आहट भर से वह मानव थर-थर कांप रहा।।
टूटे छप्पर के नीचे कुछ लोग डरे सहमें सिमटे,
ताड़ित की ध्वनि आते ही एक दूजे से हैं वो लिपटे।
घर का मालिक हर्षित है, पुलकित मन आनंदित है,
फसल मिलेगी अब बढियां कर्ज सभी होंगे चुकते।।
कहो विधाता क्यों तूने सब उल्टा-पुल्टा कर डाला,
खड़ी फसल के ऊपर ही कहर ओला का कर डाला।
द्वारे साहूकार खड़ा बरबस बेटी को मांग रहा है,
होते ही असहाय कृषक खुद फांसी को गर डाल रहा।।
।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045