गीतिका/ग़ज़ल

अनछुए कुछ मनछुए अहसास दबाए

अनछुए कुछ मनछुए अहसास दबाए,
कितना कुछ कहती रहीं खामोश निगाहें।

टूटे हुए ख्वाबों का मलबा बिखरा पड़ा है,
कितनी चुभन सहती रहीं खामोश निगाहें।

नीर पीर धीर और शमशीर भी धरे,
सब छुपा रखती रहीं खामोश निगाहें।

पूनम की रात में किसी गहरी सी झील का,
खिलता कँवल लगती रहीं खामोश निगाहें।

रहना सम्भल के वादों बातों में न यूँ आना,
हर मोड़ पर ठगती रहीं खामोश निगाहें।

बाहर का रास्ता कहाँ देखा फिर इन्होंने,
दिल में ही घर करती रहीं खामोश निगाहें।

मेरी नज़र में अक्स कोई और देख कर,
किस कदर जलती रहीं खामोश निगाहें।

दूर रह कर भी कहाँ तक दूर मै रहा,
हर पल नज़र रखती रहीं खामोश निगाहें।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा