गीतिका/ग़ज़ल

“देशज गीतिका”

सैयां हमार कोतवाली में धरा गइले प्रेम पति दलाली में

चौमुख चरचा भइल कोतवाल के सिप्पा लगवले बहाली में

थाना पुलिस न राखे उधारी सम्मन पकड़ि गइलें ससुरारी

पहिली अपील पर खुलल किवाड़ी चौका पुरवले दिवाली में॥

पकल पकौड़ी भुलाइल अँगना धन्नो धाक दबाइल सजना

कुर्सी के फुर्ती पे नाचेला रसिया चमके ले वर्दी खुशाली में॥

हल्ला भइल चोर पकड़ी सिपाही ठाढ़े कचहरी देले गवाही

नाहक कसूर कइ दिहलस जवानी पिसेले चक्की मलाली में॥

जाँच बड़हन भइल फाइल फेरल गइल जज गवाही भइल

क़िसमत के ज़ोर भइल मुकदमा पलटफेर जर जुगाली में॥

बड़ बदनामी जानि अँचरा पकड़ले मीठ रसगुल्ला ओठे धईले

खिसिया के हँसि देले जाली में अरु चेहरा छुपल घर बहाली में॥

बोल बाबू गौतम ई कइसन जमाना घर में शृंगार बहरी के दीवाना

निम्मन न लगे घर ताजी रसोई स्वाद बासी पुलाव सजी थाली में॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ