मुक्तक/दोहा

दोहे – मातृ-वंदना

माता सच में धैर्य है,लिये त्याग का सार !
प्रेम-नेह का दीप ले, हर लेती अँधियार !!

पीड़ा,ग़म में भी रखे,अधरों पर मुस्कान !
इसीलिये तो मातु है,आन,बान औ’ शान !!

माता तो है श्रेष्ठ नित ,हैं ऊँचे आयाम !
इसीलिये उसको “शरद”, बारम्बार प्रणाम !!

नारी ने नर को जना,इसीलिये वह ख़ास !
माता  पर भगवान भी,करता है विश्वास !!

माता से ही धर्म हैं,माता से अध्यात्म !
माता से ही देव हैं,माता से परमात्म !!

माता से उपवन सजे,माता है सिंगार !
माता गुण की खान है,माता है उपकार !!

माती शोभा विश्व की,माता है आलोक !
माता से ही हर्ष है,बिन नारी है शोक !!

माता फर्ज़ों से सजी,माता सचमुच वीर !
साहस,कर्मठता लिये,माता हरदम धीर !!

जननी की हो धूप या,भगिनी की हो छांव !
नारी ने हर रूप में,महकाया है गांव !!

माता की हो वंदना,निशिदिन स्तुति गान !
माता के सम्मान से,ही है नित उत्थान !!

— प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]