नींद
नींद उचट गई है ,
बारिश की बूंदे भीनी भीनी
आसमान से छिटक रही है
सवाल था बूंदों से
मेरी नींद में खलल क्यों डाल दिया ?
जज्बातों की हांडी में कुछ शब्द पक रहे थे
उन्हें इतना क्यों उबाल दिया
आज नींद नहीं आई !!
कमरे में बैठा ढूंढ रहा मैं कमरे की परछाई!!
कौन है ?जो पास है
,बिना कहे सब कुछ कह जाता है
शब्द मौन है !
उसकी आहट से सब कुछ
सहमा सहमा रह जाता है
तुम आई थी या मेरा वहम था
या मुझे कुरेद रही है ये तनहाई !
कुछ तो अजीब था
आज रात को नींद नहीं आई