कुण्डली/छंद

“कुंडलिया”

बादल घिरा आकाश में, डरा रहा है मोहिं।

दिल दरवाजा खोल के, जतन करूँ कस तोहिं॥

जतन करूँ कस तोहिं, चाँदनी चाँद चकोरी।

खिला हुआ है रूप, भिगाए बूँद निगोरी॥

कह गौतम कविराय, हो रहा मौसम पागल।

उमड़-घुमड़ कर आज, गिराता बिजली बादल॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on ““कुंडलिया”

  • गुंजन अग्रवाल

    वाह उम्दा..👌👌

    • महातम मिश्र

      हार्दिक धन्यवाद आदरणीया गुंजन जी, स्वागत है आप का पटल पर, आप का दिन मंगलमय हो

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