“कुंडलिया”
बादल घिरा आकाश में, डरा रहा है मोहिं।
दिल दरवाजा खोल के, जतन करूँ कस तोहिं॥
जतन करूँ कस तोहिं, चाँदनी चाँद चकोरी।
खिला हुआ है रूप, भिगाए बूँद निगोरी॥
कह गौतम कविराय, हो रहा मौसम पागल।
उमड़-घुमड़ कर आज, गिराता बिजली बादल॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
वाह उम्दा..👌👌
हार्दिक धन्यवाद आदरणीया गुंजन जी, स्वागत है आप का पटल पर, आप का दिन मंगलमय हो