आँगन मन इठला रहा, एक अधखिला फूल।
घात अमित्र सम वात की, चुभा गयी थी शूल।
चुभा गयी थी शूल, फूल मुरझाया ऐसे।
यत्न वृथा सब आज, खिला न पहले जैसे।
“अनहद” महत विषाद, लगे ये सूना कानन।
मुरझाया था फूल, चहकता कैसे आँगन।
……अनहद गुंजन
आँगन मन इठला रहा, एक अधखिला फूल।
घात अमित्र सम वात की, चुभा गयी थी शूल।
चुभा गयी थी शूल, फूल मुरझाया ऐसे।
यत्न वृथा सब आज, खिला न पहले जैसे।
“अनहद” महत विषाद, लगे ये सूना कानन।
मुरझाया था फूल, चहकता कैसे आँगन।
……अनहद गुंजन
कुंडलियाँ छ्न्द…. नेकी करना हो गया, बहुत बड़ा अभिशाप। इस कलियुग में है नही, इससे बढ़कर पाप। इससे बढ़कर पाप, मिलेगी मिट्टी काया। कैसे हो निर्बाह, जहां ठगनी है माया। रिश्ते नाते गौण, न बाकी “अनहद” रेकी। कलियुग का अभिशाप, न करना अब तू नेकी। अनहद गुंजन 24/11/18
योग भोग भगा मन योग सज़ा तन जीवन ज्योति प्रभाकर धामा। मंत्र महा मनरोग निवारक साधक साधु दिवाकर नामा। पाठक पाठ करे दिन रात विशुद्ध रमा कमलाकर श्यामा । योग सुधा कलिकाल प्रभाव मिटावत भोग सुधाकर यामा ।। जामुन जामुन के गुण मित्र अनेक जरा चख रोग कुदोष भगाओ पाचन शक्ति सुचार करे नित शक्कर […]
राग लिये अनुराग हि फागुन में फगवा अब गाय रही है डाल गुलाल कलाधर पे वृषभानु किशोरि रिझाय रही है ग्वालन टोल हसे सब ग्वालिन नैनन को मटकाय रही है मार रही पिचकारिन रंगन गालन पे लगवाय रही है रंग लगाकर भंग पिलाकर,खेलते मोहन है जब होरी ग्वालिन बालन रंग दिये सब, श्याम मिले अब […]