ग़ज़ल
कौन सुनेगा बात हमारी |
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी |
दाम बिना कुछ काम न होगा ,
अपना दफ्तर है सरकारी |
घोटाले जो करते रहते ,
उनकी इज्जत सबसे भारी |
जाति धरम के नाम पे होती ,
आखिर क्यों ये मारा मारी |
आजाद हमारा भारत है ,
आजाद सभी अत्याचारी |
पग पग पर हैं नेता जीते ,
पग पग पर है जनता हारी |
सबल के हाथों लुटती आई ,
भारत की ये अबला नारी |
समझ नहीं है पाया “तन्हा” ,
दुनिया की ये दुनियादारी ||
— विजय “तन्हा”