गज़ल
मोती ये पलकों से गिरा ही दे
अश्क दो-चार अब बहा ही दे
दे नहीं सकता गर ईनाम मुझे
कम से कम थोड़ी सी सज़ा ही दे
दिल घबराता है अँधेरे से
चिराग आस का जला ही दे
हाल तो पूछने आ जा मेरा
न दे तसल्ली दिल दुखा ही दे
यादें बिखरी हैं बेतरतीबी से
कभी आकर इन्हें सजा ही दे
–– भरत मल्होत्रा