दोहे
योग
ब्रह्म मुहूरत जो उठे ,और करे नित योग |
प्राण वायु करते ग्रहण , नहीं सतावे रोग ||
प्रात: की बेला मधुर , बहे सुवासित वायु |
तन मन ऊर्जावान हो, और बढ़ावे आयु ||
नित्य योग अपनाइये , काया रहे निरोग |
मिट जायेंगे दोष सब , भागे जड़ से रोग||
योग सरीखे मीत से , रहे व्याधि भयभीत |
स्वस्थ रहे काया सकल , यह सच्चा मनमीत|
आसन प्राणायाम से ,होता नित कल्याण |
शक्ति बढ़े कौशल बढ़े,मिट जाए अज्ञान ||
चित्त वृत्ति स्थिर रहे , स्वस्थ रहे हर तंत्र |
योग जगत कल्याण का ,पूरक पूरण मंत्र||
योग जीवनी शक्ति है , योग मुक्ति का द्वार |
है अनुलोम विलोम की , महिमा अमित अपार ||
स्वास्थ लाभ चाहो अगर ,इसे बनालो मीत |
जन -जन में आनंद हो ,गूंजे सुखमय गीत ||
“योगसूत्र ” ने दे दिया ,ऐसा अनुपम ज्ञान |
इसको गर अपना लिया ,सदा बढ़ेगा मान ||
महिमा प्राणायाम की , वर्णित आठों याम |
विश्व गुरू भारत बना , गूँजा जग में नाम ||
©®मंजूषा श्रीवास्तव
लखनऊ (यू. पी )