बाल गीत – ई मेल से धूप
हमें बताओ कैसे भागे,आप रात की जेल से।
सूरज चाचा ये तो बोलो,आये हो किस रेल से।
हमें पता है रात आपकी,बीती आपाधापी में।
दबे पड़े थे कहीं बीच में,अंधियारे की कापी में।
अश्व आपके कैसे छूटे?,तम की कसी नकेल से।
पूरब की खिड़की का परदा, रोज खोलकर आ जाते।
किन्तु शाम की रेल पकड़कर,बिना टिकिट वापस जाते।
लगता है थक जाते दिन की,धमा चौकड़ी खेल से।
रोज- रोज की भागा दौड़ी ,तुम्हें उबा देती चाचा।
शायद इसी चिड़चिडे पन से,गरमी में खोते आपा।
कड़क धूप हम तक भिजवाते,गुस्से में ई मेल से।
— प्रभुदयाल श्रीवास्तव
12 शिवम सुन्दरम् नगर छिंदवाड़ा म प्र