“मुक्तक”
मापनी-2122 2122, 2122 212,
समांत- आने, पदांत – के लिए
घिर गए जलती शमा में, मन मनाने के लिए।
उड़ सके क्या पर बिना फिर, दिल लगाने के लिए।
राख़ कहती जल बनी हूँ, ख्वाइसें इम्तहान में-
देख लो बिखरी पड़ी हूँ, पथ बताने के लिए॥-1
समांत- आम, पदांत – अब
कौन किसका मानता है, देखते अंजाम सब।
उड़ रहे हैं आ पतिंगे, प्रेम का परिणाम रब।
नयन तो सबका सजग है, देखता कोई नहीं-
बिन पिए ही गिर रहे हैं, कह शमा लव जाम कब॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी