सामाजिक

बुराड़ी कांड से समाज को मिले सीख

जब आपकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और आप पूरी तरह से अपने दिमाग से संतुलन खो देते हैं असल मे तब ही आप इतनी बड़ी मूर्खता करते हैं कि अमूल्य जीवन आपके हाथों से निकल जाता है।
इस खेल में फंसे दिल्ली के बुराड़ी इलाके के 11 सदस्यो का भरापूरा परिवार एक साथ काल के गाल में समा गया…..फांसी के फंदों पर लटककर। अब बात ये भी है कि अंधविश्वास का चक्कर था… घर के छोटे बेटे को 11 साल पहले गुजरे पिता की कमी खलती थी… और घर वालो ने उसके विक्षिप्त कलापो पर विश्वास कर उसका साथ दिया …आदि इत्यादि।
पुलिस दर्दनाक मौत के सबूत बटोर रही है…
……लेकिन मीडिया हर रात को इसपर शो दिखाकर डरा रहा है। हर चैनल को प्राइम टाइम का मसाला मिल गया है। इसमे डिबेट बैठायी जा रही है।
मामला इतना गंभीर है, उस इलाके के आसपास के परिवार डरे हुए हैं, बच्चे सहमे हुए है….और ये मीडिया वाले कहीं उनकी आंखों का खौफ दिखा रहे है, कहीं उनके डर की इन्तेहाँ बयान कर रहे हैं।
मीडिया में मरने वालों के प्रति कोई संवेदनशीलता नज़र नहीं आती, ऐसे मामलों में स्वस्थ चर्चा के बजाए ये मसाला बनाने का गोरखधंधा करने वाले टीवी चैनलों को शर्म भी नहीं आती है।
मीडिया में उनके घर की पर्सनल डायरी बहुत प्रचलित हो रही है जिसके आधार पर अंधविश्वास का केस माना जा रहा है, और भी जांच पड़ताल चल रही है लेकिन मीडिया  हर दिन एक नया सबूत मिलने का दावा करके उसमे अपना टीआरपी बढ़ाओ अभियान चला रहा है।
ये नीच जाति ऐसी है कि मुर्दे के छाती पर पांव रख उसकी खाल उधेड़ने में इनको शर्म ना आये।
खैर, मामला बेहद गंभीर है, यह कांड ये सिखाता है कि अपने मानसिक संतुलन को बनाये रखने के लिए हमेशा स्वस्थ चर्चा करें, शारीरिक श्रम करें, आत्मविश्वास बढ़ाएं, खूब हँसे, जीवन का आनंद लें, जो बीत गया सो बात गयी, मृत्यु के पश्चात कोई नहीं लौटता, हमारे धर्मशास्त्रों का गहराई से अध्ययन करें, उनमें छिपे विज्ञान को पहले समझें फिर विश्वास करें, ईश्वर पर विश्वास करें पर किसी पर अंधा विश्वास ना करें, खुशियां बाटें और खुशी का हिस्सा बनें…
दुनिया का कोई तंत्र मंत्र किसी सच्चे आत्मविश्वास से भरे व्यक्ति को उसके पथ से डिगा नहीं सकता।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ‘जो व्यक्ति स्वयं पर विश्वास नहीं कर सकता वह ईश्वर पर भी विश्वास नहीं कर सकता।’
~सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!