गीतिका
प्यार को भी प्यार से ही प्यार करके देखिए
गीतिका यक प्यार से ही आप रचके देखिए
आ गये जो चमन में तो, आज बस ही जाइए
बैठ, इसकी रौनकों पर, मनन करके देखिए
इस चमन का सौंदर्य तो, मन हमारा मोहता
हर अदा से चार सू, नज़रें भरके देखिए
हो उदासी अब अगर, जिस चेहरे पर टूटती
अब मनाएँ उसे, आँसू ही न छलके देखिए
चैन कितना पा सकोगे, जो मिले छात्र दुखी
उस विद्यार्थी की अभी ही, फ़ीस भर के देखिए
चैन उनको मिल सके कैसे, नशे की लत रही
शाम होते ही कहीं भी, जाम छलके देखिए
मंदिरों की, मस्जिदों की, क्या किसी को है पड़ी
है अर्चना का भवन, सौगात उसके देखिए
सँभली थी जो रखी थी, ख़ास तरह से कहीं
टूटते – बिखरे सभी, माला के मनके देखिए
भेदभावों की यही दुनिया, अभी मज़बूर है
अब ज़रा भाईचारे का, स्वाद चखके देखिए
आज हम आज़ाद हैं, पर कुछ परेशानी ही रही
एकता का गढ़ ‘ रश्मि ‘, सब ही न ! गढ़के देखिए
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’