गीत/नवगीत

ज्ञान के दीप जला पाऊं

सद्बुद्धि दो मुझको राम,
करूं मैं अच्छे-अच्छे काम,
धनुष धरूं मैं न्याय के हेतु,
जग में हो मेरा भी नाम.
आज्ञाकारी मैं बन पाऊं,
भ्रातृप्रेम में मैं रंग जाऊं,
मानव बन मानवता के हित,
ज्ञान के दीप जला पाऊं

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “ज्ञान के दीप जला पाऊं

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    lila bahan , ज्ञान के दीप जला पाऊं, कविता बहुत बेहतरीन है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता बहुत अच्छी लगी. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    बच्चे की अभिलाषा कितनी खूबसूरत है!धनुष धरूं मैं न्याय के हेतु,जग में हो मेरा भी नाम.ऐसा ही हम सब करें, तो कितना अच्छा हो?

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