थाली का बैंगन
पता नही एक बात हमारी समझ में क्यों नहीं आ रही है ? क्या मैं अभी समझदार नही हुआ हूं ? या ओ बात मेरी समझ के बाहर है ? लगभग 30 वर्षों से एक तिलिस्म देखता आ रहा हूं और वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में यह तिलिस्म कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है और ईनाम भी खूब गिरता है।
जब किसी राजा या हूकूमत के द्वारा किसी वस्तु या किसी व्यक्ति विशेष पर ईनाम की मुनादी की गई हो तो उस पर समस्त प्रजा का हक हो जाता है ! जो भी व्यक्ति उसे हासिल करेगा वही ईनाम का असली हकदार होगा। मजे की बात तो यह कि वर्तमान में सरांय तो बनाई जाती है किन्तु सरांय बनानें वाले ही उस पर अपना अधिकार जताने लगते हैं ! बेचारे मुसाफिरों की तो कहीं कोई सुनवाई ही नही है, खैर कोई बात नही यह सब अपनी अपनी सोंच और समझ का नतीजा है मुझे इन सरांयों में नही ठहरना है अभी मेरी राह बहुत लंबी है अभी मै चल रहा हूं।
किसी को क्या कहूं ? मेरे ही घर की बात ले लीजिए! हम पांच भाई है सभी हट्टे कट्टे, चुस्त दुरूस्त, मेरे पिता जी ने गाजर की खेती की फसल बहुत सुन्दर उगी पर आस- पास की झाडियों में मौजूद खरगोशों ने फसल को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया तो पिता जी के द्वारा सभी भाइयों को खेती की सुरक्षा का भार सौंप दिया गया ! और समय-समय पर पहरा भी लगा दिया गया। फिर हम सबने सोंचा कि पिता जी की खेती है ! मेहनत करेगें तो मिलेगा ! नही करेगें तो भी मिलेगा ! यही सोंच कर कोई भी फसल को पूरा समय नही दे पा रहा था, उधर नुकसान होनें का सिलसिला जारी था, फिर अचानक ! एक दिन पिता जी खेत के पास गये और देखा की खरगोशों ने तो बहुत नुकसान कर दिया ! हम सभी भाइयों को नकारा करार देते हुये खरगोश को पकड़वानें की मुनादी पूरे गांव में करवा दी ! कि जो मेरी फसल को सुरक्षित रखते हुये खरगोशों को पकड़ेगा उसको 20 हजार का नगद ईनाम दिया जायेगा ! ईनाम सुनते ही हम सभी भाइयों के कान खडे़ हो गये ! मेरे खेतों के बारे में भला हमसे ज्यादा कौन जानेगा ? किस कोने कितने बिल हैं, खरगोशों के आने जानें के कितने रास्ते हैं ! पूरे जंगल में जाल फैलाने से अच्छा है कि खरगोश के बिल के पास ही जाल को क्यों न विछा दिया जाये ! यही सोंचकर हम सभी भाई एक जुट हो गये ! उधर गांव वाले कल की तैयारी में जुटे थे, और हम सभी भाइयों को तो एक बार इसकी सुरक्षा का भार मिल ही चुका था ! और अब ईनाम भी मिलेगा यही सोंच कर हम सभी भाइयों ने पूरी रात जाल विछाकर धर-पकड़ का खेल खेलते रहे सुबह तक एक दर्जन खरगोश पकड़ चुके थे! खरगोश को पकड़ने में कुछ कांटे पांव में चुभे तो उंगलियों में कुछ खरोच भी आई ! अब पिता जी की नजरों में हम सभी बडे़ सूरवीर बन चुके थे पास के मशहूर हकीम को बुलाकर सभी की महरम पट्टी करवाई और अपने लाड़लों की बहादुरी को देखकर ईनाम देनें में कोई देरी नही की ! ईनाम देते वक्त पिता जी को लगा कि ये सभी बडे़ होनहार है इनकी उम्मींदे बरकरार रहे इसलिये सभी को एक – एक बन्दूक भी दिलवा दी ! हम सभी भाई फूले नही समा रहे थे ! यह बात गांव वालों को हजम नही हो रही थी ! और मेरी तहर सभी गांव वाले भी कुछ समझ नही पा रहे थे कि आखिर तिलिस्म क्या है ? सभी गांव वाले सोच रहे थे कि जब घर का पैसा घर ही में रखना था तो काहे को इतना बड़ा दिखावा किया ! लेकिन किसी गांव वाले के पास इतनी हिम्मत नही थी कि वह यह बात मेरे पिता जी के सामने कह सके ! जानते हो क्यू ? क्योंकि इन दिनों उत्तर प्रदेश में मुठभेड बहुत हो रही है सभी ढेर हो जाते हैं।
— राज कुमार तिवारी (राज)