कविता

उमंग और हौसला

उमंग और हौसला को बाँध
निकल पड़ी अपनी मंजिल की ओर
आसान नही ये मंजिल
रास्तो मे.आते है लाखो अड़चने
फिर भी बुलंदियो को बूलंद किये हुये
बढती जाती हूँ आगे
थक के चूर होती हूँ
कही कही लड़खड़ा कर.गिर पड़ती हूँ
कुछ लोग देख हंसते है
कुछ मजाक बनाते है
अपने नजरो मे मुझे नीचा दिखाते है
छोड़ दी लोगो की फिकर करना
खुद उठती हूँ खुद संभलती हूँ
कर्मपथ पर अग्रसर होती हूँ
अंदर के हौसला को बूलंद करते हुये
मंजिल को भी पा लेती हूँ
आज वही हंसी वही ठहाके
कही गुम सा हो गये है
जो अपने से नीच समझते थे
आज उनकी ही नजरो मे बस गयी हूँ।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४