कविता – सावन घन
पुलकित है प्यासा मन
नाच उठा अंतर मन
बरसे यह सावन घन
उमड़ घुमड़ बरसे||
मेघों से याचक बन
देखो प्रेमी चातक
स्वाती की एक बूँद
माँग रहा कबसे||
बरसे अविरल बादल
नेह के आँगन आँगन
प्रियतम की प्रीत संग
तन – मन सब भीगे ||
वह छूटा बचपन
उपवन है स्म्रतियों का
कागज की वह नौका
आकृति बन निकले ||
बचपन का चंचल मन
यौवन का अल्हड़पन
लौटे फिर सावन घन
जीवन मुस्काये ||
चहुँ दिस आनंद मंगल
हर्शित हो जन जीवन
जग जीवन मंजूषा
नेह से भर जाये ||
— मंजूषा