कविता

।।कैसे सन्यास ले लूँ मैं।।

कभी करता है जी सब छोड़कर सन्यास ले लूं मैं,
छोड़कर सारी जिम्मेदारी थोडा सा साँस ले लूँ मैं।
रोके माँ-बाप का चेहरा, आज फिर रुक लेता है,
जीते जी माँ-बाप के कहो कैसे सन्यास ले लूँ मैं।।

बचपन बीता यौवन की दहलीज पर पाँव जमाया हूँ,
लें लूँ अब संन्यास पुरानी चाहत फिर मन लाया हूँ।
दूँ त्याग कहो कैसे उसको जो हरपल मुझपर मरती है,
फेरे सात लगाकर जिसको साथ में अपने लाया हूँ।।

घर में रौनक अपने है किलकारी गूँज रही बच्चों की,
चाहत एक ही है अब मन में भविष्य सवारूं बच्चों की।
घुटने के बल दौड़ रहा अब बचपन घर के आँगन में,
धारण कर संन्यास स्वयं ही भविष्य बिगाडूँ बच्चों की।।

पैंतालीस कर पार पचासे ओर बढ़ा जाता हूँ,
पौरुष घटता है पर हर दिन प्रेम जवां कर जाता हूँ।
अरे बच्चों के दिल धड़क रहें, यौवन उन पर आया है,
इन लम्हों को छोड़ कोई क्या संन्यासी बन जाता है।।

हुई सगाई कल बेटी की खुशियाँ हैं आंगन में,
आई है बारात द्वार पर, मंड़प है सजाया आंगन में।
कल छोड़ हमारा आंगन लाडली डोली चढ़कर जाएगी,
मैं संन्यासी क्यों बन जाऊं कहो छोड़ बूढ़ी को आंगन में।।

भीड़ लगी है द्वारे अपने, सजे हुए हैं हम-दोनों,
चूड़ी कंगन बिंदी चुनरी, अंग-वस्त्र से हम-दोनों।
साथ रहा प्यारा अपना, ये भी सफर सुहाना होगा,
संन्यास नहीं श्मशान चले, अब अर्थी पर है हम-दोनों।।

।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं