गज़ल
तू मेरे दिल, मेरी जां, मेरे ईमान में है
हमसा आशिक न तेरा कोई जहान में है
दिखाई देता है हर शख्स में तेरा ही अक्स
मिलूँ किसी से भी बस तू ही ध्यान में है
मेरी वफा का सिला न दे कोई बात नहीं
मुझे भरोसा है उस पे जो आसमान में है
हम न होंगे तो करेगा कद्र कौन तेरी
संभल जा अब भी नादां तू किस गुमान में है
कहूँ कैसे तेरे इंकार से नहीं दुखता
दिल मुझमें भी वही है जो हर इंसान में है
–– भरत मल्होत्रा